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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटोका ]
[ १६९ केवलज्ञानदिवाकरकिरणकलापप्रणाशिताज्ञानः ।
नवकेवललब्ध्युद्गमसुजनितपरमात्मव्यपदेशः ॥६३।। टीका - केवलज्ञानदिवाकरकिरणकलापप्ररणाशिताज्ञानः कहिए केवलज्ञानरूपी दिवाकर जो सूर्य, ताके किरणनि का कलाप कहिए समूह, पदार्थनि के प्रकाशने विष प्रवीण दिव्यध्वनि के विशेष, तिनकरि प्रनष्ट कीया है शिष्य जननि का अज्ञानांधकार जानै असा सयोगकेवली है। इस विशेषण करि सयोगी भट्टारक के भव्यलोक कौं उपकारीपना है लक्षण जाका, असी परार्थरूप संपदा कही। बहुरि नवकेवललब्ध्युद्गमसुजनितपरमात्मव्यपदेशः' कहिए क्षायिकसम्यक्त्व, क्षायिकचारित्र, ज्ञान, दर्शन, दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्यरूप लक्षण धरै जे नव केवललब्धि, तिनिका उदय कहिए प्रकट होना, ताकरि सुजनित कहिए वस्तुवृत्ति करि निपज्या है परमात्मा,
असा व्यपदेश कहिए नाम जाका, असा सयोगकेवली है । इस विशेषण करि भगवान 3 अर्हत्परमेष्ठी के अनंत ज्ञानादि लक्षण धरै स्वार्थरूप संपदा दिखाइए है ।
असहायरणारणदंसरणसहिओ इदि केवली हु जोगेण । जुत्तो त्ति सजोगिजिरणो, अरगाइरिणहरणारिसे उत्तो॥६४॥२
असहायज्ञानदर्शनसहितः इति केवली हि योगेन ।
युक्त इति सयोगिजिनः अनादिनिधनाचे उक्तः ॥६४॥ टीका - योग करि सहित सो सयोग, अर परसहाय रहित जो ज्ञान-दर्शन, तिनिकरि सहित सो केवली, सयोग सो ही केवली, सो सयोगकेवली। बहुरि घातिकर्मनि का निर्मल नाशकर्ता, सो जिन सयोगकेवली सोई जिन, सो सयोगकेवलिजिन कहिए । जैसै अनादि-निधन ऋषिप्रणीत आगम विषै कह्या है।
आगै प्रयोग केवलि गुणस्थान को निरूप है - सीसि संपत्तो, णिरुद्धणिस्सेसआसवो जीवो ।
कम्मरयविप्पमुक्को, गयजोगो केवली होदि ॥६५॥ ३ १. 'सजोगिजिणो' इसके स्थान पर 'सजोगो इदि ऐसा पाठान्तर है । २. पट्खण्डागम - धवला पुस्तक १, पृष्ठ १९३, गाथा १२५
३. पट्खण्डागम-धवला पुस्तक १, पृष्ठ २००, गाथा १२६