________________
सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
[ १६१
प्रागै सूक्ष्मकृष्टि को प्राप्तपने का स्वभाव को गाथा दोय करि प्ररूपै है - पुव्दापुव्वप्फड्ढय, बादरसुहमगय किट्टिश्रणुभागा । हीरक माणंतगुणेणवराहु वरं च हेटस्स ॥५६॥ पूर्वा पूर्वस्पर्धक बादर सूक्ष्मगतकृष्ट्यनुभागाः ।
नक्रमा अनंतगुणेन, प्रवरात्तु वरं चाधस्तनस्य ॥५९॥
टीका - पूर्वे अनिवृत्तिकरण गुणस्थान विषै वा संसार अवस्था विषे जे सभवे ऐसे कर्म की शक्ति समूहरूप पूर्वस्पर्धक, बहुरि अनिवृत्तिकरण परिणामनि करि कीए तिनके अनंतवे भाग प्रमाण अपूर्वस्पर्धक, बहुरि तिर्नाहि करि करी जे बादरकृष्टि, बहुरि तिनही करि करी जे कर्म शक्ति का सूक्ष्म खंडरूप सूक्ष्मकृष्टि, इनिका क्रम तै अनुभाग अपने उत्कृष्ट ते अपना जघन्य, अर ऊपरि के जघन्य ते नीचला उत्कृष्ट ऐसा अनंतगुणा घाटि क्रम लीए है । वे - Givelit
भावार्थ पूर्व स्पर्धकनि का उत्कृष्ट अनुभाग, सो श्रविभागप्रतिच्छेद अपेक्षा जो प्रमाण धरै है, ताके अनतवें भाग पूर्व स्पर्धकनि का जघन्य अनुभाग है । बहुरि ताके अनंतवे भाग अपूर्वस्पर्धकनि का उत्कृष्ट अनुभाग है । बहुरि ताके अनंतवे भाग अपूर्वस्पर्धकनि का जघन्य अनुभाग है । बहुरि ताके अनंतवे भाग बादरकृष्टि का उत्कृष्ट अनुभाग है । बहुरि ताके अनंतवे भाग बादरकृप्टि का जघन्य अनुभाग है । बहुरि ताके अनंतवे भाग सूक्ष्मकृष्टि का उत्कृष्ट अनुभाग है । बहुरि ताके अनंतवे भाग सूक्ष्मकृष्टि का जघन्य अनुभाग है; ऐसा अनुक्रम जानना ।
बहुरि इन पूर्वस्पर्धकादिकनि का स्वरूप आगे लब्धिसार-क्षपणासार का कथन लिखेगे, तहा नीकै जानना । तथापि इनिका स्वरूप जानने के अथि इहां भी किचित् वर्णन करिये है ।
कर्म प्रकृतिरूप परिणए जे परमाणु, तिनिविषै अपने फल देने की जो शक्ति, ताकी अनुभाग कहिये । तिस अनुभाग का ऐसा कोई केवलज्ञानगम्य अश, जाका दूसरा भाग न होइ, सो इहां अविभागप्रतिच्छेद जानना ।
बहुरि एक परमाणु विषं जेते प्रविभागप्रतिच्छेद पाइए, तिनके समूह का नाम वर्ग है।
१ पट्डागम
- घवना पुस्तक १, पृष्ठ १६, गाया १२१