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________________ १४.] | गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ४६ ताका आधा को चय एक करि गुणी अर गच्छ च्यारि करि गुणै छह होइ, सो इहां उत्तरधन का प्रमाण जानना । बहुरि इस उत्तरधन छह को (६) सर्वधन एक सौ वासठि (१६२) विष घटाएं, अवशेष एक सौ छप्पन रहे, तिनको अनुकृप्टि गच्छ च्यारि का भाग दीएं गुणतालीस पाए, सोई प्रथम समय संबंधी परिणामनि का जो प्रथम खण्ड, ताका प्रमाण है, सो यह ही सर्व जघन्य खण्ड है; जातें इस खण्ड ते अन्य सर्व खडनि के परिणामनि की संख्या पर विशुद्धता करि अधिकपनों संभव है। बहुरि तिस प्रथम खंड विर्ष एक अनुकृप्टि का चय जोडे, तिसही के दूसरा खंड का प्रमाण चालीस हो है। जैसे ही तृतीयादिक अंत खंड पर्यत तिर्यक् एक-एक चय अधिक स्थापने । तहां तृतीय खंड विष इकतालीस अंत खड विष वियालीस परिणामनि का प्रमाण हो है । ते ऊर्ध्वरचना विष जहा प्रथम समय संबंधी परिणाम स्थापे, ताकै आगे-आगै वरोबरि ए खंड स्थापन करने । ए (खड) एक समय विष युगपत् अनेक जीवनि के पाइए, तातै इनिको बरोबरि स्थापन कीए है । वहुरि तातै परे ऊपरि द्वितीय समय का प्रथम खंड प्रथम समय का प्रथम खड ३६ ते एक अनुकृष्टि चय करि (१) एक अधिक हो है; तातै ताका प्रमाण चालीस है। जाते द्वितीय समय सवंधी परिणाम एक सो छयासठि, सो ही सर्वधन, तामें अनुकृप्टि का उत्तर धन छह घटाड, अवशेष को अनुकृप्टि का गच्छ च्यारि का भाग दीये, तिस द्वितीय समय का प्रथम खड की उत्पत्ति सभव है । बहुरि ताकै आगे द्वितीय समय के द्वितीयादि खड, ते एक-एक चय अधिक सभवै है ४१, ४२, ४३ । इहां द्वितीय समय का प्रथम खंड सो प्रथम समय का द्वितीय खंड करि समान है। __ असे ही द्वितीय समय का द्वितीयादि खंड, ते प्रथम समय का तृतीयादि खडनि करि समान है । इतना विशेष - जो द्वितीय समय का अंत का खड प्रथम समय का सर्व खडनि विष किसी खड करि भी समान वाही । वहुरि तृतीयादि समयनि के प्रथमादि खंड द्वितीयादि समयनि के प्रथमादि खंडनि तें एक विशेष अधिक है। तहा तृतीय समय के ४१, ४२, ४३, ४४ । चतुर्थ के ४२, ४३, ४४, ४५ । पंचम समय के ४३, ४४, ४५, ४६ । षष्ठम समय के ४४, ४५, ४६, ४७ । सप्तम समय के ४५, ४६, ४७, ४८ । अष्टम समय के ४६, ४७, ४८, ४६ । नवमा समय के ४७, ४८, ४९, ५० । दशवा समय के ४८, ४९, ५०, ५१ । ग्यारहवां समय के ४६, ५०, ५१, ५२ । वारहवा समय के ५०, ५१, ५२, ५३ । तेरहवां समय
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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