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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका पोठिका ]
[ १३६ सै बाणवै रहे । इनको पद सोलह, ताका भाग दीये एक सौ बासठि पाये, सोई प्रथम समय सबंधी परिणामनि की सख्या हो है । बहुरि यामै एक-एक चय बधाये संते द्वितीय, तृतीयादि समय संबंधी परिणामनि की संख्या हो है । तहां द्वितीय समय संबधी एक सौ छयासठ, तृतीय समय सबधी एक सौ सत्तरि इत्यादि क्रम ते एक-एक चय बधती परिणामनि की संख्या हो है । १६२, १६६, १७०, १७४, १७८, १८२, १८६, १६०, १९४, १९८, २०२, २०६, २१०, २१४, २१८, २२२ ।
इहा अत समय संबंधी परिणामनि की संख्यारूप अतधन ल्याइये है । ___ 'व्येकं पदं चयाभ्यस्तं तदादिसहितं धनं' इस सूत्र तै एक घाटि गच्छ पंद्रह, ताको चय च्यारि करि गुण साठि, बहुरि याकौ आदि एक सौ बासठि करि युक्त कीएं दोय सै बाईस होइ; सोई अंत समय सबधी परिणामनि का प्रमाण जानना । बहुरि यामै एक चय च्यारि घटाए दोय से अठारह द्विचरम समय सबधी परिणामनि का प्रमाण जानना । जैसै कहै जो धन कहिए समय-समय संबधी परिणामनि का प्रमाण, तिनको अधःप्रवृतकरण का प्रथम समय ते लगाइ अंत समय पर्यन्त ऊपरिऊपरि स्थापन करने ।
श्रागै अनुकृष्टिरचना कहिए है - तहा नीचे के समय संबंधी परिणामनि के जे खड, तिनके ऊपरि के समय सबंधी परिणामनि के जे खंडनि करि जो सादृश्य कहिए समानता, सो अनुकृष्टि असा नाम धरै है।
भावार्थ - ऊपरि के अर नीचे के समय सबंधी परिणामनि के जे खंड, ते परस्पर समान जैसे होइ, तैसे एक समय के परिणामनि विर्ष खंड करना, तिसका नाम अनुकृष्टि जानना । तहा ऊर्ध्वगच्छ के संख्यातवां भाग अनुकृष्टि का गच्छ है, सो अंकसदृष्टि अपेक्षा ऊर्ध्वगच्छ का प्रमाण सोलह, ताको संख्यात का प्रमाण च्यारि का भाग दीए जो च्यारि पाए; सोई अनुकृष्टि विषै गच्छ का प्रमाण है । अनुकृष्टि विष खंडनि का प्रमाण इतना जानना । बहुरि ऊर्ध्व रचना का चय को अनुकृष्टि मच्छ का भाग दीए, अनुकृष्टि विष चय होइ, सो ऊर्ध्व चय च्यारि को अनुकृष्टि गच्छ च्यारि का भाग दीएं एक पाया; सोई अनुकृष्टि चय जानना । खड-खंड प्रति बधती का प्रमाण इतना है । बहुरि प्रथम समय सबंधी समस्त परिणामनि का प्रमाण एक सौ बासठि, सो इहां प्रथम समय सबंधी अनुकृष्टि रचना विष सर्वधन जानना। बहुरि 'व्येकपदार्धघ्नचयगुरणो गच्छ उत्तरधन' इस सूत्र करि एक घाटि गच्छ तीन,