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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
यस्मादुपरितनभावा, अधस्तनभावैः सदृशका भवंति । तस्मात्प्रथमं करणं, प्रधः प्रवृत्तिमिति निर्दिष्टम् ||४८ ||
टोका - जा कारण है जिस जीव का ऊपरि-ऊपरि के समय सबधी परिणामनि करि सहित अन्य जीव के नीचे-नीचे के समय सबधी परिणाम सदृश - समान हो है, ता कारण ते सो प्रथम करण अध. करण है - जैसा रिद्दिट्ठ कहिए परमागम विषै प्रतिपादन कीया है ।
भावार्थ - तीनों कररणनि के नाम नाना जीवनि के परिणामनि की अपेक्षा है । तहां जैसी विशुद्धता वा सख्या लीए किसी जीव के परिणाम ऊपर के समय सबधी होइ, तैसी विशुद्धता वा सख्या लीए किसी अन्य जीव के परिणाम अधस्तन समय सबधी भी जिस करण विषै होइ, सो अध प्रवृत्त करण है । अधःप्रवृत्त कहिए नीचले समय संबंधी परिणामनि की समानता को प्रवर्ते से हैं करण कहिए परिणाम जा विषै, सो प्रधः प्रवृत्तकरण है । इहां करण प्रारभ भए पीछे घने घने समय व्यतीत भए जे परिणाम होहि, ते ऊपरि ऊपरि समय संबंधी जानने । बहुरि थोरे - थोरे समय व्यतीत भए जे परिणाम होहि, ते अघस्तन - अधस्तन समय सबधी जानने । सो नाना जीवनि के इनकी समानता भी हो ।
कहै है -
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ताका उदाहरण - जैसे दोय जीव के एक कालि अध प्रवृत्तकरण का प्रारंभ करे, तहा एक जीव के द्वितीयादि घने समय व्यतीत भये, जैसे सख् विशुद्धता लीये परिणाम भये, तैसे सख्या वा विशुद्धता लीये द्वितीय जीव के प्रथम समय विष भी होइ । याही प्रकार अन्य भी ऊपर नीचे के समय सबधी परिणामनि की समानता इस करण विषै जानि याका नाम अध प्रवृत्तकरण निरूपण कीया है ।
आगै अधः प्रवृत्तकरण के काल का प्रमाण कौ चय का निर्देश के अर्थ
अंतोमहत्तमेत्तो, तक्कालो होदि तत्थ परिणामा ।
लोगाणमसंखमिदा, उवरुवरिं सरिसवड्ढिगया ॥ ४६ ॥
अंतर्मुहूर्तमात्रस्तत्कालो भवति तत्र परिणामाः ।
लोकानामसंख्यमिता, उपर्युपरि सदृशवृद्धिगताः ॥ ४९ ॥