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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
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तहां प्रथम एक स्थापि प्रथम प्रस्तार अपेक्षा उपरि ते संरंभादि तीन करि गुणी, इहा प्रतस्थान का ग्रहरण है, तातै अनक्ति कौ न घटाए, तीन ही भए । बहुरि इनको तीन योग करि गुरिण, इहां वचन, काय ए दोय अनकित घटाए सात भए । बहुरि इनकी कृतादि तीन करि गुणि, अनुमोदन अनकित स्थान घटाए, वीस हो है । बहुरि इनको च्यारि कषाय करि गुणिए, एक लोभ अनकित स्थान घटाए गुन्यासी हो है । औसा पूछया हुवा आलाप गुण्यासीवा है; जैसे ही अन्य उद्दिष्ट साधने । बहुरि इस ही प्रकार ते द्वितीय प्रस्तार अपेक्षा भी नष्ट - उद्दिष्ट समुद्दिष्ट साधने । बहुरि पूर्वे जो विधान का है, ताते या गूढयंत्र असे करने ।
प्रथम प्रस्तार अपेक्षा जीवाधिकरण का गूढयंत्र ।
लोभ
४
क्रोध
१
कृत
O
मन
o
वचन
१२
समारभ
३६
द्वितीय प्रस्तार पेक्षा जीवाधिकरण का गूढयत्र ।
सरभ
समारंभ
१
२
सरभ
o
मन
०
मान
२
कारित
४
कृत
o
क्रोध
O
वचन
३
कारित
&
मान
माया
३
अनुमोदित
८
२७
काय
२४
आरभ
७२
श्रारभ
३
काय
६
मोद
१८
माया
५४
लोभ
८ १
तहा नष्ट पूछे तो जैसे च्यारो पक्तिनि के जिस-जिस कोठा के अक मिलाए पूछया हुवा प्रमाण मिलै, तिस तिस कोठा विषै स्थित भेदरूप आलाप कहना । जैसे साठिवां आलाप पूछै तौ च्यारि, आठ, बारह, छत्तीस अक जोडे साठि अक होइ ।