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________________ १३० । यह जीवाधिकरण का प्रथम प्रस्तार है । यहा संरभादिक की प्रथम अक्षर की सहनानी है। ऊपरि च्यारि कपायनि की सहनानी है। । ४। ४। ४। ४ ४ ४४ ४ ४४ काअ कृ का प्रकका अकृ का अवका| अ का काभक का अका म | म | म | व | व | व | का| का काम | म | म | व | व | का| का काम | म | म | व | व | व ] का | का) का स | साप्रामा' प्रा। ग्राआआ। प्राग्रा प्रा। सस सस बहुरि यह द्वितीय प्रस्तार है । इहा क्रोधादि कषायनि विष क्रम तै सत्ताईस-सत्ताईस भंग कहने । क्रोध मान माया लोभ [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ४६ २७ २७ २७ २७
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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