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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ४८
बहुरि सोलह कषाय र नव नो कपाय भेद करि कपाय पचीस | वहुरि स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु, श्रोत्र, मन नाम धारक इंद्रिय छह है । वहुरि स्त्यानगृद्धि, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, निद्रा, प्रचला भेद करि निद्रा पांच है । बहुरि स्नेह, मोह भेद करि प्रणय दोय है । इनको परस्पर गुणै, पांचसे अधिक संतीस हजार प्रमाण हो है ( ३७५०० ) । ए भी मिथ्यादृष्टि आदि प्रमत्तसयत गुणस्थान पर्यंत प्रवर्ते है । जे बीस प्ररूपणा, तिनि विषै यथासंभव वध का हेतुपणाकरि पूर्वोक्त सख्या यादि पांच प्रकार लीए जैनागम ते अविरुद्धपने जोडने ।
अव प्रमादनि के साड़ा सैतीस हजार भेदनि विपे संख्या, दोय प्रकार प्रस्तार, तिन प्रस्तारनि की अपेक्षा प्रक्षसंचार, नष्ट, समुद्दिष्ट पूर्वोक्त विधान ते यथासभव
करना ।
बहुरि गूढ यत्र करने का विधान न कह्या, सो गूढ यंत्र कैसे होइ ?
ताते इहां भाषा विषे गूढ यंत्र करने का विधान कहिए है । जार्कों जाने, जाका चाहिए, ताका गूढ यत्र कर लीजिये । तहां पहिले प्रथम प्रस्तार की अपेक्षा कहिए है । जाका गूढ यंत्र करना होइ, तिस विवक्षित के जे मूलभेद जितने होंड, तितनी पंक्ति का यंत्र करना । तहा तिन मूल भेदनि विषै अंत का मूलभेद होइ, ताकी पक्ति सवनि के ऊपर करनी । तहा तिस मूल भेद के जे उत्तर भेद होहि, तितने कोठे करने । तिन कोठानि विप तिस मूल भेद के जे उत्तर भेद होहि, ते क्रम
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लिखने । बहुरि तिनही प्रथमादि कोठानि विपै एक, दोय इत्यादि क्रम ते एक
भेद तै पहला उपांत मूल
एक बघता का अक लिखना । बहुरि ताके नीचे जो अंत भेट होइ, ताकी पक्ति करनी । तहां उपांत मूल भेद के जेते उत्तर भेद होइ तिनके कोठे करने । तहां उपान्त मूल भेद के उत्तर भेदनि को क्रम तै लिखने । बहुरि तिनही कोठानि विषै प्रथम कोठा विषं विदी लिखनी। दूसरे कोठा विषे ऊपर की पंक्ति का अंत का कोठा विपै जेते का अक होइ, सो लिखना । वहुरि तृतीयादि कोठानि विषै दूसरा कोठा विषे जेते का अंक लिख्या, तितना-तितना ही वधाई वधाई क्रम तै लिखने । बहुरि ताके नीचे-नीचे जे उपांत तं पूर्व मूल भेद होंइ, ताकी आदि देकरि आदि के मूल भेट पर्यत जे मूल भेद होड, तिनकी पक्ति करनी । तहा तिनके जेते-जेते उत्तर भेद होड, तितने तितने कोठे करने । बहुरि तिन कोठानि विषै अपनामूल भेद के जे उत्तर भेद होइ, ते क्रम तं लिखने ।