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आत्मा ही सामायिक है
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सामायिक के स्वरूप का वर्णन बहुत-कुछ किया जा चुका है। फिर भी, प्रश्न है कि सामायिक क्या है ? बाह्य वस्तुओ के स्वरूप का निर्णय करने के लिए वैज्ञानिको को कितना ऊहापोह, विचारविमर्श, चिन्तन-मनन करना पडता है, तब कही जाकर वे वस्तु के वास्तविक स्वरूप तक पहुच पाते है। भला, जब बाह्य वस्तुप्रो के सम्बन्ध मे यह बात है, तो सामायिक तो एक बहुत ही गूढ अन्तर्लोक की धार्मिक क्रिया है। उसके स्वरूप-परिज्ञान के लिए तो हमे पुन - पुन चिन्तन, मनन करने की आवश्यकता है । अत पुनरुक्ति से घबराइये नही, चिन्तन के क्षेत्र मे जहाँ तक प्रगति कर सके, करने का प्रयत्न करें।
सामायिक क्या है ? यह प्रश्न भगवती-सूत्र मे बडे ही सुन्दर ढग से उठाया गया है और इसका उत्तर भी आध्यात्मिक भावना की उच्चतम श्रेणी को लक्ष्य मे रख कर दिया गया है। भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा के कालास्यवेसी अनगार, भगवान् महावीर के अनुयायी स्थविर मुनिराजो के पास पहुचते हैं और प्रश्न करते है कि "हे पार्यो | सामायिक क्या है ? और उसका अर्थ-प्रयोजन-फल क्या है ?" स्थविर मुनिराज उत्तर देते है कि "हे आर्य | प्रात्मा ही सामायिक है, और आत्मा ही सामायिक का अर्थ-फल है"आया सामाइए, आया सामाइयस अट्ठे ।" ।
-भगवती-सूत्र, श० १, उ०६ भगवती-सूत्र का यह सूत्र वचन बहुत सक्षिप्त है, किन्तु उसमे चिन्तन-सामग्री भरी हुई है । आइए, जरा स्पष्टीकरण कर ले कि विशाल अात्मा ही सामायिक और सामायिक का अर्थ किस प्रकार है ?