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सामायिक-प्रवचन
सुधरना और न सुधरना, यह तो उसकी स्थिति पर है । अपना प्रयत्न चालू रक्खो, सभव है कभी तो अच्छा परिणाम पाही जाए ।
विरोधी और दुश्चरित्र व्यक्ति को देखकर घृणा भी नही करनी चाहिए। ऐसी स्थिति मे माध्यस्थ्य भावना के द्वारा समभाव रखना, तटस्थ हो जाना ही श्रेयस्कर है। प्रभ महावीर को सगम आदि देवो ने कितने भयकर कप्ट दिए, कितनी मर्मान्तक पीडा पहुचाई, किन्तु भगवान् की माव्यस्थ्य वत्ति पूर्ण रूप से अचल रही। उनके हृदय मे विरोधियों के प्रति जरा भी क्षोभ एव क्रोध नही हुआ। वर्तमान युग के सघर्षमय वातावरण मे माध्यस्थ्य भावना की बडी भारी अावश्यकता है। .
ध्यान विधित्मता ने यं ध्याता ध्येय तथा फलम् ।
-योगशास्त्र ७१ ध्यान के उच्छक माधक को तीन वाते जान लेनी चाहिए--१ व्याता-ध्यान करने वाने की योग्यता। २ व्येय--जिन का व्यान किया जाता है उसका म्वन्प और फल-ध्यान पापन।