________________
१४
शुभ भावना
मानव-जीवन मे भावना का वडा भारी महत्व है । मनुष्य अपनी भावनाओ से ही बनता - बिगडता है। हजारो लोग दुर्भावनाओ के कारण मनुष्य के उत्तम शरीर को पाकर भी राक्षस बन जाते है, और हजारो मनुष्य पवित्र विचारो के कारण देवो से भी ऊची भूमिका को प्राप्त कर लेते है, फलत देवो के भी पूज्य बन जाते है । मनुष्य श्रद्धा का, विश्वास का, भावना का बना हुआ है, जो जैसा सोचता है, विचारता है, भावना करता है, वह वैसा ही बन जाता है
सत्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत । श्रद्धामयोऽय पुरुषो यो यच्छृद्ध स एव स ॥
- गीता १७|३
सामायिक एक पवित्रव्रत है। दिन-रात का चक्र यो ही सकल्प-विकल्पो मे, इधर-उधर की उधेडबुन में निकल जाता है । मनुष्य को सामायिक करते समय दो घडी ही शान्ति के लिये मिलती है । यदि साधक इन दो घडियो मे भी मन को शान्त न कर सका, पवित्र न बना सका, तो फिर वह पवित्रता की उपासना कब करेगा ? ग्रतएव प्रत्येक जैनाचार्य सामायिक मे शुभभावना भाने के लिए विशेष निर्देश करते है । पवित्र सकल्पो का वल अन्तरात्मा को महान् प्राध्यात्मिक शक्ति एव विशुद्धि प्रदान करता है । ग्रात्मा से परमात्मा के, नर से नारायण के पद पर पहुँचने का, यह विशुद्ध विचार ही स्वर्ण सोपान है ।
सामायिक में विचारना चाहिए कि "मेरा वास्तविक हित एव कल्याण, आत्मिक सुख-शान्ति के पाने में एव श्रन्तरात्मा को विशुद्ध