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________________ सामायिक का मूल्य महाराजा श्रोणिक पूनिया के पास पहुँचे और बोले कि “सेठ । तुम मुझ से इच्छानुसार धन ले लो और उसके बदले मे मुझे अपनी एक सामायिक दे दो, मैं नरक से बच जाऊँगा।" राजा के उक्त कथन के उत्तर में पूनिया श्रावक ने कहा कि "महाराज । मैं नही जानता, सामायिक का क्या मूल्य है ? अतएव जिन्होने आपको मेरी सामायिक लेना बताया है, आप उन्ही से सामायिक का मूल्य भी जान लीजिए।" राजा श्रोणिक फिर भगवान् महावीर की सेवा मे उपस्थित हुआ। भगवान् के चरणो मे निवेदन किया कि "भगवन | पूनिया श्रावक के पास मैं गया था। वह सामायिक देने को तैयार है, परन्तु उसे पता नही कि सामायिक का क्या मूल्य है ? अत भगवन् । आप कृपा कर के सामायिक का मूल्य वता दीजिए। ___ भगवान् ने कहा--राजन् । तुम्हारे पास क्या इतना सोना और जवाहरात है कि जिसकी थैलियो का ढेर सूर्य और चाँद को छु जाए? कल्पना करो कि इतना धन तुम्हारे पास हो, तो भी वह सामायिक की दलाली के लिए भी पर्याप्त नही होगा। फिर सामायिक का मूल्य तो कहाँ से दोगे ?" भगवान का यह कथन सुनकर राजा श्रेणिक चुप हो गया। उपर्युक्त घटना बता रही है कि सामायिक के वास्तविक फल के समाने ससार की समस्त भौतिक सम्पदाएँ तुच्छ है, फिर वे कितनी ही और कैसी भी क्यो न हो । सामायिक के द्वारा सासारिक फल को चाहना ऐसा ही है, जैसे चिन्तामणि देकर बदले मे कोयला चाहना । वस्तुत सामायिक तो अभय की साधना है, समत्त्व की साधना है, भौतिक धन सम्पत्ति आदि के द्वारा उसका मूल्य कैसे आका जा सकता है। * . *
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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