________________
सामायिक में दुर्ध्यान विवर्जन
सामायिक मे समभाव की उपासना की जाती है। समभाव का अर्थ राग-द्वेष का परित्याग है। सामायिक शब्द का विवेचन करते हुए कहा है कि-"सामाइयं नाम सावज्जजोगपरिवज्जरणं निरवज्जजोग-पडिसेवण च।"
--आवश्यक-अवचूरि पीछे वता चुके है कि सामायिक का अर्थ है- 'सावध अर्थात् पापजनक कर्मो का त्याग करना और निरवद्य अर्थात् पाप-रहित कार्यों का स्वीकार करना।" पाप-जनक दो ही ध्यान शास्त्रकारो ने बतलाए हैआर्त और रौद्र । अतएव सामायिक का लक्षण करते हुए कहा भी है
"समता सर्वभूतेषु सयम शुभभावना ।
आर्त-रोद्र-परित्यागस्तद्धि, सामायिक व्रतम् ॥" अर्थात्-छोटे-बड़े सब जीवो पर समभाव रखना, पाँच इन्द्रियो को अपने वश मे रखना, हृदय मे शुद्ध और श्रेष्ठ भाव रखना, आर्त तथा रौद्र दुानो का परित्याग करना 'सामायिक व्रत' है।"
उक्त लक्षण मे पात तथा रौद्र दुर्ध्यान का परित्याग, सामायिक का मुख्य लक्षण माना गया है। जब तक साधक के मन से प्रार्त
और रौद्र ध्यान के दु सकल्प नही मिटते है, तब तक सामायिक का शुद्ध स्वरूप प्राप्त नहीं किया जा सकता।