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सामायिक का महत्त्व
सामायिक मोक्ष प्राप्ति का प्रमुख श्रग है । देखिए, जब तक हृदय मे समभाव का उदय न होगा, तब तक किसी भी दशा मे मोक्ष नही प्राप्त हो सकता । सामायिक मे समभाव, समता मुख्य है । और, समता क्या है ? 'ग्रात्मस्थिरता ।" और आत्मस्थिरता अर्थात् ग्रात्म भाव मे रहना ही चारित्र है । ग्रात्मभाव मे स्थिर होने वाले चारित्र से ही मोक्ष मिलती है, यह जैन-तत्त्वज्ञान का प्रत्येक अभ्यासी जानता है । इतना ही नही, समता यानी ग्रात्मस्थिरता-रूप चारित्र तो सिद्धो मे भी होता है । सिद्धो मे स्थूल क्रियाकाण्ड रूप चारित्र नही होता, परन्तु श्रात्मस्थिरतारूप निश्चय चारित्र तो वहाँ पर भी ग्राम सम्मत है | चारित्र ग्रात्मविकास - रूप एक गुरण है, अत उसके अभाव में सिद्धत्त्व सिवा शून्य के और कुछ नही रहेगा
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' चारित्र स्थिरतारूप, प्रत सिद्ध ष्वपीष्यते ।'
- यशोविजय, ज्ञानसार ३१८
हाँ तो पाठक समझ गए होगे कि सामायिक का कितना अधिक महत्त्व है ? सामायिक के बिना मोक्ष नही मिलती, और तो और, सिद्ध अवस्था मे भी सामायिक का होना ग्रावश्यक है । ग्रतएव आचार्य हरिभद्र 'अष्टक प्रकरण' ग्रन्थ मे कहते है
सामायिक च मोक्षाग, पर सर्वज्ञ- भाषितम् । वासी-चन्दन- कल्पानामुक्तमेतन्महात्मनाम् ||२१