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सामायिक प्रवचन
सामायिक से पहले अच्छा आचरण बनाना-यह अपनी मतिकल्पना नही है, इसके लिए पागम-प्रमाण भी उपलब्ध है। गृहस्थ-धर्म के बारह ब्रतो मे आप देख सकते है, सामायिक का स्थान नौवाँ है । सामायिक के पहले के आठ व्रत साधक की सासारिक वासनाप्रो के क्षेत्र को सीमित बनाने के लिए एव सामायिक करने की योग्यता पैदा करने के लिए है । अतएव जो साधक सामायिक से पहले के अहिंसा आदि आठ व्रतो को भली-भाँति स्वीकार करते हैं, उनकी सासारिक वासनाएँ सीमित हो जाती है और हृदय मे आध्यात्मिक शान्ति के सुगन्धित पुष्प खिलने लगते है । यह ही नही, उसके अन्तर्जगत् मे यथावसर कर्तव्य और अकर्तव्य का सुमधुर विवेक भी जागृत हो जाता है। जो मनुष्य चूल्हे पर चढी हुई कढाई मे के दूध को शान्त रखना चाहता है, उसके लिए यह आवश्यक होगा कि वह कढाई के नीचे से जलती हुई आग को अलग कर दे। आग को तो अलग न करना, केवल ऊपर से दूध मे पानी के छीटे दे-देकर उसे शात करना, किसी भी दशा मे सफल नही होता । छल, कपट अभिमान, अत्याचार आदि दुर्गुणो की आग जब तक साधक के मन मे जलती रहेगी, तब तक सामायिक के छीटे कभी भी उसके अन्तर्ह दय मे स्थायी शान्ति नही ला सकेगे ।
उक्त विवेचन को लबा करने का हमारा अभिप्राय सामायिक के अधिकारी का स्वरूप बताना था । सक्षेप मे पाठक समझ गए होगे कि सामायिक के अधिकारी का क्या कुछ कर्त्तव्य है ? उसे ससारव्यवहार मे कितना प्रामाणिक होना चाहिए ।