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सामायिक के अधिकारी
साधना तभी फलवती होती है, जबकि उसका अधिकारी योग्य हो । अनधिकारी के पास जाकर अच्छी से अच्छी साधना भी निस्तेज हो जाती है, वह अधिक तो क्या, एक इच भी आध्यात्मिक जीवन का विकास नही कर पाती ।
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आजकल सामायिक की साधना क्यो नही सफल हो रही है ? वह पहले सा तेज सामायिक मे क्यो न रहा, जो क्षण भर मे ही साधक को आध्यात्मिक - सुमेरु के उच्च शिखर पर पहुँच देता था ? बात यह है कि आज के अधिकारी योग्य नही रहे है । ग्राजकल बहुत से लोग तो यह समझ बैठे है कि "हम संसार के व्यवहार मे भले ही चाहे जो करे, हिंसा, झूठ, चोरी, दभ, व्यभिचार आदि पाप-कार्य का कितना ही क्यो न आचरण करे, परन्तु सामायिक करते ही सब-के-सब पाप नष्ट होजाते हैं और हम झटपट मोक्ष के अधिकारी बन जाते हैं । ससार का प्रत्येक व्यवहार पाप पूर्ण है, अत यहाँ पाप किए बिना काम ही नही चल सकता । "
उक्त धारणा वाले सज्जन केवल कृत पापो से छुटकारा पाने के लिए ही सामायिक करते है, किन्तु कभी भी पाप कार्य के त्याग को आवश्यक नही समझते । इस प्रकार के धर्मध्वजी भक्तो के लिए ज्ञानियो का कथन है कि "जो लोग पाप-कर्म का त्याग न करके सामायिक के द्वारा केवल पापकर्म के फल से बचना चाहते है, वे लोग वास्तव मे सामायिक नही करते, किन्तु धर्म के नाम पर दभ करते है ।"
सर्वथा सत्य एव भ्रात कल्पनाओ के फेर मे पडा हुआ