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सामायिक के दोष
शास्त्रकारो ने सामायिक के समय मे मन, वचन और शरीर को सयम से रखना बताया है। परन्तु, मन बडा चचल है, वह स्थिर नही रहता। आकाश से पाताल तक के अनेकानेक झूठे सच्चे घाट-कुघाट घडता ही रहता है। अतएव अविवेक, अहकार आदि मन के दोषो से वचना, साधारण बात नही है। इसी प्रकार भूल, विस्मृति असावधानता आदि के कारण वचन और शरीर की शुद्धि मे भी दूषण लग जाते है। सामायिक को दूषित करने वाले तथा सामायिक के महत्व को घटाने वाले मन-वचन-शरीर सम्बन्धी, स्थूल रूप से, बत्तीस दोप होते है। सामायिक करने से पहले साधक को दश मन के, दश वचन के और बारह काय के, इस प्रकार कुल बत्तीस दोषो को जानना आवश्यक है, ताकि यथावसर दोषो से बचा जा सके और सामायिक की पवित्र साधना को सुरक्षित रक्खा जा सके।
मन के दस दोष
अविवेक जसो कित्ती, लाभत्थी गव्व-भय-नियारणत्थी।
ससय रोस प्रविणो, अवहुमारणए दोसा भारिणयव्वा ।।
(१) अविवेक-सामायिक करते समय किसी प्रकार का विवेक न रखना, किसी भी कार्य के औचित्य-अनौचित्य का अथवा समयअसमय का ध्यान न रखना, 'अविवेक' है।
(२) यश-कीति-सामायिक करने से मुझे यश प्राप्त होगा, समाज में मेरा आदर-सत्कार वढेगा, लोग मुझे धर्मात्मा कहेगे , इस