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मामायिक की शुद्धि
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हिताहित परिणाम का विचार करो और फिर बोलो-इस सुनहले सिद्धान्त को भूलना, अपनी मनुष्यता को भूलना है।
(३) काय-शुद्धि-कायशुद्धि का यह अर्थ नही कि शरीर को साफ-सुथरा, सजा-वजा कर रखना चाहिए। यह ठीक है कि शरीर को गदा न रक्खा जाए, स्वच्छ रक्खा जाए, क्योकि गदा शरीर मानसिक-शान्ति को ठीक नही रहने देता, धर्म की भी हीलना करता है। परन्तु, यहाँ काय-शुद्धि से हमारा अभिप्राय कायिक सयम से है। आन्तरिक प्राचार का भार मन पर है और बाह्य प्राचार का भार शरीर पर है। जो मनुष्य उठने मे, बैठने मे, खडा होने मे, हाथ-पैर आदि को इधर-उधर हिलाने डुलाने मे विवेक से काम लेता है, असभ्यता नहीं दिखलाता है, किसी भी जीव को पीडा नही पहुचाता है , वही काय-शुद्धि का सच्चा उपासक होता है। जब तक हमारा वाह्य कायिक आचार शुद्ध एव अनुकरणीय नही होगा , तब तक दूसरे अनुकरणप्रिय साधको पर हम अपना क्या धार्मिक' प्रभाव डाल सकते हैं ? हमारे मे आन्तरिक शुद्धि है या नहीं, इस प्रश्न का उत्तर जनता को हमारे वाह्य-याचरण पर से ही तो मिलेगा ? आन्तरिक शुद्धि की आधार भूमि. बाह्य ही तो है न ? इसलिए सामायिक मे अान्तरिक भाव शुद्धि के साथ बाह्याचार-शुद्धि की भी आवश्यकता है। **...