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सामायिक-प्रवचन
मन का नियत्रण
प्रश्न हो सकता है कि मन को नियत्रण मे कैसे किया जाय ? मन को एक बार ही नियत्रण मे ले लेना बडी कठिन वात है । मन तो पवन से भी सूक्ष्म है। वह प्रसन्नचन्द्र राजर्षि जैसे महात्माओ को भी अन्तर्मुहुर्त जितने अल्प समय मे सातवी नरक के द्वार तक पहुंचा देता है और फिर कुछ क्षणो मे ही वापस लौटकर केवलज्ञान, केवलदर्शन के द्वार पर भी खडा कर देता है। तभी तो कहा है
'मनोविजेता जगतोविजेता' -मन को जीतने वाला, जगत का जीतने वाला है।
मनुष्य की सकल्प शक्ति अपरपार है, वह चाहे तो मन पर अपना अखण्ड शासन चला सकता है। इसके लिए जप करना, ध्यान करना, सत्साहित्य का अवलोकन करना आवश्यक है ।
(२) वचन-शुद्धि-मन एक गुप्त एव परोक्ष शक्ति है । अत वहा प्रत्यक्ष कुछ करना, कठिन-सा है। परन्तु, वचनशक्ति तो प्रकट है, उस पर तो प्रत्यक्ष नियत्रण का अकुश लगाया जा सकता है। प्रथम तो सामायिक करते समय वचन को गुप्त ही रखना चाहिए। यदि इतना न हो सके, तो कम-से-कम वचन समिति का पालन तो करना ही चाहिए। इसके लिए यह ध्यान मे रखना चाहिए कि साधक सामायिक-व्रत मे कर्कश, कठोर, और दूसरे के कार्य मे विघ्न डालने वाला वचन न बोले। सावध अर्थात जिससे किसी जीव की हिंसा हो, ऐसा, सदोप वचन भी न बोले। क्रोध, मान माया एव लोभ के वश मे होकर वचन बोलना भी निषिद्ध है। किसी की चापलूसी के लिए भटैती करना, दीन वचन बोलना, विपरीत या अतिशयोक्ति मे वोलना भी ठीक नही। सत्य भी ऐसा नही वोलना चाहिए जो दूसरे का अपमान करने वाला हो । वचन अन्तरग दुनिया का प्रतिविम्ब है । अत मनुप्य को हर समय, विशेषकर सामायिक के समय वडी सावधानी से वाणी का प्रयोग करना चाहिए। पहले
१-लेखक की 'महामत्र-नवकार' नामक प्रसिद्ध पुस्तक मे इस विपय पर अच्छा प्रकाश डाला गया है।