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सामायिक की शुद्धि
वास्तव मे यह बात है भी ठीक | मन का काम विचार करना है, फलत श्राकर्षरण - विकर्षण, कार्याकार्य, स्थिति-स्थापकता यदि सब कुछ, विचारशक्ति पर ही निर्भर है। और तो क्या, हमारा सारा जीवन ही विचार है। विचार ही हमारा जन्म है, मृत्यु है, उत्थान है, पतन है, स्वर्ग है, नरक है, सब कुछ है । विचारो का वेग ग्रन्य सव वेगो की अपेक्षा अधिक तीव्रगतिमान् होता है । आजकल के विज्ञान का मत है कि प्रकाश की गति एक सेकण्ड मे १,८०,००० मील है, विद्युत् की गति २,८८,००० मील है, जब कि विचारो की गति २२,६५,१२० मील है । उक्त कथन से अनुमान लगाया जा सकता है कि मनोगत विचारो का प्रवाह कितना महान् है ?
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विचारशक्ति के दो रूप
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विचार-शक्ति के मुख्यतया दो भेद है— कल्पना - शक्ति और तर्क शक्ति । कत्पना-शक्ति का उपयोग करने से मन मे अनेक प्रकार के सकल्प - विकल्प उठने लगते है, मन चचल और वेगवान् हो जाता है, किसी भी प्रकार की व्यवस्था नही रहती । इन्द्रियो पर, जिनका राजा मन है, जिन पर वह शासन करता है, स्वयं अपना नियत्रण कायम नही रख सकता । जब मन चचल हो उठता है, तो कर्मो का प्रवाह चारो ओर से अन्तरात्मा की ओर उमड पडता है, हजारो वर्षो के लिए अन्तस्तल मे गहरी मलिनता पैठ जाती है । मन की दूसरी शक्ति तर्क - शक्ति है, जिसका उपयोग करने से कल्पना शक्ति पर नियत्रण स्थापित होता है, विचारो को व्यवस्थित बनाकर असत्सकल्पो का पथ छोडा जाता है, और सत्सकल्पो का पथ अपनाया जाता है । तर्क-शक्ति के द्वारा पवित्र हुई मनोभूमि मे ज्ञान एव क्रियारूपी अमृतजल से सिंचन पाकर समभाव-रूपी कल्पवृक्ष बहुत शीघ्र फलशाली हो जाता है । राग, द्व ेष, भय, शोक, मोह, माया आदि का अन्धकार कल्पना का अन्धकार है, और वह, तर्क - शक्ति का सूर्य उदय होते ही, तथा अहिंसा, दया, सत्य-सयम, शील, सन्तोष आदि की उज्ज्वल किरणे प्रस्फुरित होते ही अपने आप ध्वस्त, विध्वस्त हो जाता है
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