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________________ मामायिक के दोप ४६ प्रकार यश-कीति की कामना से प्रेरित होकर सामायिक करना 'यश कीति' दोष है। (३) लाभार्य-धन श्रादि के लाभ की इच्छा से सामायिक करना 'लाभार्थ' दोष है। सामायिक करने से व्यापार मे अच्छा लाभ रहेगा, व्याधि नष्ट हो जायेगी. इत्यादि विचार लाभार्थ दोष के अतर्गत है। (४) गर्व-मैं बहुत सामायिक करने वाला हूँ, मेरे बराबर कौन सामायिक कर सकता है ? अथवा मै बडा कुलीन हूँ, धर्मात्मा हूँ, इत्यादि गर्व करना गर्द' दोप है। (५) भय-मैं अपनी जाति मे ऊँचे घराने का व्यक्ति होकर भी यदि सामायिक न करूं तो लोग क्या कहेगे ? इस प्रकार लोक-निन्दा से डरकर सामायिक करना 'भय' दोप है। अथवा किसी अपराध के कारण मिलने वाले राजदण्ड से एव लेनदार आदि से बचने के लिए सामायिक करके बैठ जाना भी 'भय' दोष है। (६) निदान–सामायिक का कोई भौतिक फल चाहना 'निदान' दोष है । जरा और स्पष्ट रूप से कहे, तो यो कह सकते है कि सामायिक करने वाला यदि अमुक पदार्थ या ससारी सुख के लिए सामायिक का फल बेच डाले, तो वहाँ 'निदान' दोप होता है। (७) सशय—मैं जो सामायिक करता हूँ, उसका फल मुझे मिलेगा या नही ? सामायिक करते-करते इतने दिन हो गये, फिर भी कुछ फल नही मिला, इत्यादि सामायिक के फल के सम्बन्ध मे सशय रखना 'सशय' दोप है । (८) रोष—सामायिक मे क्रोध, मान, माया, लोभ करना, 'रोष' दोष है। मुख्यरूप मे लड-झगड कर या रूठ कर सामायिक करना 'रोष' दोष माना जाता है। (६) अविनय-सामायिक के प्रति आदरभाव न रखना, अथवा सामायिक मे देव, गुरु, धर्म का अविनय करना 'अविनय' दोष है। (१०) अवहुमान-अतरग भक्तिभावजनित उत्साह के बिना
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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