SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४० सामायिक-प्रवचन पाप-कार्यो के त्याग का ही उल्लेख है, वस्त्र आदि के त्याग का नही । परन्तु, हमारी प्राचीन परपरा इसी प्रकार की है कि अनुपयुक्त अलकार तथा गृहस्थवेषोचित पगडी, कुरता आदि वस्त्रो का त्याग करना ही चाहिए, ताकि ससारी दशा से साधना-दशा की पृथक्ता मालूम हो, और मनोविज्ञान की दृष्टि से धर्म-क्रिया का वातावरण अपने-आपको भी अनुभव हो, तथा दूसरो की दृष्टि मे भी सामायिक की महत्ता प्रतिभासित हो। कुछ सज्जनो का कहना है कि 'सामायिक मे कपडे उतारने की कोई आवश्यकता नही, क्योकि सामायिक के पाठ मे ऐसा कोई विधान नहीं है।' यह ठीक है कि पाठ में विधान नही है । परन्तु, सव विधान पाठ मे ही हो, यह तो कोई नियम नही । कुछ अन्य पाठो पर भी दृष्टि डालनी होती है, कुछ परपरा की प्राचीनता भी देखनी होती है। उपासकदशाग-सूत्र मे कुण्डकोलिक श्रावक के अध्ययन मे वर्णन आया है कि "उसने नाम-मुद्रिका और उतरीय अलग पृथ्वी-शिला पट्ट पर रखकर भगवान् महावीर के पास स्वीकृत धर्म-प्रज्ञप्ति स्वीकार की ।"१ यह धर्म-प्रज्ञप्ति सामायिक के सिवा और कोई नही हो सकती। नाम-मुद्रिका और उत्तरीय उतारने का क्या प्रयोजन ? स्पष्ट ही उक्त पाठ सामायिक की ओर सकेत करता है। इसके अतिरिक्त, कपडे उतारने की परपरा भी बहुत प्राचीन है। इसके लिए प्राचार्य हरिभद्र तथा अभयदेव आदि के ग्रन्थो का अवलोकन करना चाहिए। प्राचार्य हरिभद्र रिण का पाठ उद्धृत करते हुए कहते है _ 'मामाइय कुणतो मउड अवणेति, कुडलारिण, रणाममुद, पुप्फतबोलपावरगमादी वोमिरति ।' ~~-यावश्यक-वृद्वृत्ति प्रत्याभ्यान ६ अध्ययन प्राचार्य अभयदेव कहते है 'म च किल सामायिक कुर्वन् कुडले, नाममुद्रा चापनयति , पाप-नाम्यूलप्रावरादिक च व्युत्सृजतीत्येष विधि सामायिकस्य ।' -पचाशक-विवरण १ १ नाममुग उनरिग्जग च पुटवीमिलापट्टए ठवेड, ठवे इत्ता, समगम्म भगवग्रो महावीरम्न अतिय धम्मपत्ति उवमपज्जिनाग विहरति । --उपामकदशाग, अध्ययन ६
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy