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सामायिक-प्रवचन
ठीक तौर से लक्ष्य नही वेध सकता, आगा-पीछा-तिरछा हो जाता है, परन्तु निरन्तर के अभ्यास से हाथ स्थिर होता है, दृष्टि चौकस होती है, और एक दिन का अनाडी निशानेबाज अचूक शब्द-वेधी तक बन जाता है। यह ठीक है कि सामायिक की साधना बडी कठिन साधना है, सहज ही यह सफल नही हो सकती। परतु अभ्यास करिए, आगे बढिए, आपको साधना का उज्ज्वल प्रकाश एक-न-एक-दिन अवश्य जगमगाता नजर आएगा। एक दिन का साधना-भ्रष्ट मरोचि तपस्वी, कुछ जन्मो के बाद भगवान महावीर के रूप मे हिमालय-जैसा महान्, अटल, अचल, साधक बनता है और समभाव के क्षेत्र मे एक महान् उच्च आदर्श उपस्थित करता है ।। **
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सामाइयमाहु तस्स ज जो अप्पारणभए रण दसए ।
-सूत्र० ११२।१७ जो अपनी आत्मा को भय से मुक्त अर्थात् निर्भयभाव मे स्थापित करता है, वही सामायिक की साधना कर सकता है।
स्थापितको मपनी महत्मा को भय से सावन कति नियभाव में