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सामायिक की शुद्धि
ससार मे काम करने का महत्त्व उतना नहीं है, जितना कि काम को ठीक ढग से करने का महत्त्व है। यह न मालूम करो कि काम कितना किया ? बल्कि यह मालूम करो कि काम कैसा किया ? काम अधिक भी किया, परन्तु वह सुन्दर ढग से, जैसा चाहिए था वैसा न किया, तो एक तरह से कुछ भी न किया ।
सामायिक के सम्बन्ध मे यही बात है। सामायिक-साधना की महत्ता, मात्र जैसे-तैसे साधना का काल पूरा कर देना, एक सामायिक की बजाय चार-पाँच सामायिक कर लेना ही नही है। सामायिक की महत्ता इसमे है कि आपको सामायिक करते देखकर दर्शको के हृदय मे भी सामायिक के प्रति आदर्श श्रद्धा जागृत हो , वे लोग भी सामायिक करने के लिए उद्यत हो। यापका अपना आत्म-कल्याण तो होना ही चाहिए। वह क्रिया जो अपने और दूसरो के हृदय मे कोई खास रसानुभूति न पैदा कर सके, वह साधना ही क्या ? वस्तुत जीवित साधना ही साधना है, मृत-साधना का कोई मूल्य नही है ।
चार प्रकार की शुद्धि
सामायिक करने के लिए सबसे पहले भूमिका की शुद्धि होना आवश्यक है। यदि भूमि शुद्ध होती है, तो उसमे बोया हुआ वीज भी फलदायक होता है । इसके विपरीत, यदि भूमि शुद्ध नही है, तो उसमे बोया हुआ बीज भी सुन्दर और सुस्वादु फल कैसे दे सकता है ? अस्तु, सामायिक के लिए भूमिका-स्वरूप