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सामायिक : द्रव्य और भाव
जैन-धर्म मे प्रत्येक वस्तु का द्रव्य और भाव की दृष्टि से बहुत गंभीर विचार किया जाता है । अतएव सामायिक के लिए भी प्रश्न होता है कि द्रव्य सामायिक और भाव सामायिक का स्वरूप क्या है
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द्रव्य सामायिक
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द्रव्य का अभिप्राय यहाँ ऊपर के विधि-विधानो तथा साधनो से है । अत सामायिक के लिए ग्रासन - बिछाना, रजोहरण या पूजणी रखना, मुखवस्त्रिका' बाधना, गृहस्थ वेष के कपडे उतारना, फेरना आदि द्रव्य सामायिक है । द्रव्य सामायिक का वर्णन द्रव्य-शुद्धि, क्षेत्र -शुद्धि आदि के वर्णन मे अच्छी तरह किया जाने वाला है ।
माला
भाव सामायिक
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भाव का अभिप्राय यहाँ अन्तर्हृदय के भावो और विचारो से है । अर्थात् राग-द्वेष से रहित होने के भाव रखना, राग-द्वेष से रहित
१ श्वेताम्बर सप्रदाय के दो भाग है— स्थानकवासी और मूर्तिपूजक । स्थानकवासी समाज मे मुख पर मुखवस्त्रिका बाघने की परंपरा है, और मूर्तिपूजक समाज मे मुखवस्त्रिका को हाथ मे रखने की प्रथा हैं । हा, बोलते समय यतना के लिए मुख पर लगाने का भी है । दिगम्बर जैन परम्परा मे तो आजकल सामायिक की प्रथा ही नही । गलत
विधान उनके यहाँ
है । उनके यहाँ सामायिक के लिए एक पाठ बोला जाता है और मुखवस्त्रिका | का कोई विधान नही है ।