________________
सामायिक-प्रवचन
प्राचार्य हरिभद्र पचाशक मे लिखते हैसमभावो सामाइय,
तण-कचण सत्त मित्त विसओ त्ति । गिरभिस्सग चित्त ,
उचिय पवित्तिप्पहाण च ।।११।५।। चाहे तिनका हो, चाहे सोना, चाहे शत्रु हो, चाहे मित्र, सर्वत्र अपने मन को राग-द्वेष की आसक्ति से रहित रखना तथा पाप-रहित उचित धार्मिक प्रवृत्ति करना, सामायिक है , क्योकि 'समभाव' ही तो सामायिक है। . : *
सावद्यकर्ममुक्तस्य दुर्व्यानरहितस्य च । समभावो मुहूर्ततद्-व्रत सामायिकाह्वयम् ।
-धर्म० अधि० ३७ आर्त रौद्र आदि दुर्ध्यानो से रहित तथा सावध कर्म से मुक्त होकर मुहुर्त भर तक जो समभाव की आराधना की जाती है वह सामायिक व्रत कहलाता है। * .