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सामायिक एक विश्लेपण
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सामायिक का रूढार्थ
शब्दार्थ के अतिरिक्त शब्द का रूढ अर्थ भी हुआ करता है। वर्तमान में प्रचलित प्रत्येक धार्मिक-क्रिया का जो रूढार्थ है, वह ऊपर से तो बहुत सक्षिप्त, सीमित एव स्थूल मालूम होता है, परन्तु उसमे रहा हुआ आशय, हेतु या रहस्य बहुत ही गभीर, विस्तृत एव विचारपूर्वक मनन करने योग्य होता है।
सामायिक की क्रिया, जो एक बहुत ही पवित्र एव विशुद्ध क्रिया है, उसका रूढार्थ यह है कि- 'एकान्त स्थान मे शुद्ध प्रासन बिछाकर शुद्ध वस्त्र अर्थात् अल्प हिंसा से बना हुआ, सादा ( रगबिरगा, भडकीला नही ) खादी आदि का वस्त्र-परिधान कर, दो घडी तक 'करेमि भते' के पाठ से सावध व्यापारो का परित्याग कर, सासारिक झझटो से अलग होकर, अपनी योग्यता के अनुसार अध्ययन, चिंतन, ध्यान, जप, धर्म-कथा आदि करना सामायिक है।'
क्या ही अच्छा हो, शब्दार्थ रूढार्थ से और रूढार्थ शब्दार्थ से मिल जाय | सोने मे सुगन्ध हो जाय ।
सामायिक का लक्षण
समता सर्वभूतेषु, सयम शुभ-भावना ।
आर्तरौद्र-परित्यागस्तद्धि सामायिक व्रतम् ।। 'सब जीवो पर समता-समभाव रखना, पाँच इन्द्रियो का सयम-नियत्रण करना, अन्तर्ह दय मे शुभ भावना-शुभ सकल्प रखना, आर्त-रौद्र दुानो का त्याग कर धर्मध्यान का चिन्तन करना सामायिक व्रत है।'
ऊपर के श्लोक मे सामायिक का पूर्ण लक्षण वर्णन किया गया है। यदि अधिक दौड-धूप मे न पडकर, मात्र प्रस्तुत श्लोक पर ही लक्ष्य रक्खा जाए और तदनुसार जीवन बनाया जाए, तो सामायिक-व्रत की आराधना सफल हो सकती है।