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सामायिक-सूत्र : हिन्दी पद्यानुवाद
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मगल-मय, कल्याण-रूप,
देवत्व-भाव के धारक हो ! ज्ञान-रूप हो, प्रबल अविद्या
अन्धकार - सहारक हो ! पर्युपासना श्री चरणो की,
एकमात्र जीवन-धन है ! हाथ जोडकर शीश झुका कर
बार बार अभिवन्दन है !
आलोचना-सूत्र
[चन्द्रमणि की ण्वनि ] आज्ञा दीजे हे प्रभो । प्रतिक्रमण की चाह है, ईर्यापथ-आलोचना, करने का उत्साह है । आज्ञा मिलने पर करूं प्रतिक्रमण प्रारंभ मै, आते पथ गन्तव्य मे, किया जीव प्रारभ मैं ! प्राणी, बीज तथा हरित, ओस, उतिंग, सेवाल का, किया विमर्दन मत्तिका, जल, मकडी के जाल का! एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय तथा त्रीन्द्रिय की सीमा नही, चतुरिन्द्रिय, पचेन्द्रिय नष्ट हुए हो यदि कही ! सम्मुख आते जो हने और ढके हो धूल से, मसले हो यदि भूमि पर, व्यथित हुए हो भूल से ।
आपस मे टकरा दिए, छ कर पहुंचाई व्यथा, पापो की गणना कहाँ, लम्बी है अब भी कथा ! दी हो कटु परितापना, ग्लानि, मरण सम भी किए, त्रास दिया, इक स्थान से अन्य स्थान हटा दिए । अधिक कहूँ क्या प्राण भी, नष्ट किए निर्दय वना, दुरस्कृत हो मिथ्या सकल, अमल सफल हो साधना।