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________________ ३०२ : २ सम्यक्त्व-सूत्र [ पीयूषवर्ष की ध्वनि ] देव मम अर्हन् विजेता कर्म के, साधुवर गुरुदेव धारक धर्म के ! जिन - प्रभाषित धर्म केवल तत्व है, ग्रहण की मैंने यही सम्यक्त्व है ! ३ : गुरुगुणस्मरण-सूत्र [ दिक्पाल की ध्वनि ] चंचल, चपल, हठीली नित पाँच इन्द्रियो का - सवर - नियत्रणा से भव- विष उतारते हैं ! नव गुप्ति शील व्रत का सादर सदैव पाले, कलुषित कषाय चारो दिन-रात टारते हैं ! पाँचो महाव्रतो के धारक सुधैर्य-शाली, आचार पाँच पाले जीवन सुधारते हैं ! गुरुदेव पाँच समिती तीनो सुगुप्ति धारी, छत्तीस गुरण विमल हैं, शिव-पथ संवारते है ! : ४ गुरुवन्दन - सूत्र [ लावनी की ध्वनि ] तीन वार गुरुवर ! प्रदक्षिणा, श्रादक्षिण में करता हूँ ! वन्दन, नति, सत्कार और, सम्मान हृदय से करता हूँ ! परिशिष्ट
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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