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सामायिक प्रवचन
मनुष्य जीवन देव दुर्लभ है
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हाँ, तो आत्मा, कर्म-मल से लिप्त होने के कारण अनादिकाल से ससार-चक्र मे घूम रही है, त्रस और स्थावर की चौरासी लाख योनियो मे भ्रमण कर रही है । कभी नरक मे गयी, तो कभी तिर्यच मे, नाना गतियो मे, नाना रूप धारण कर, घूमते-घामते ग्रनन्तकाल हो चुका है, परन्तु दुख से छुटकारा नही मिला । दुख से छुटकारा पाने का एकमात्र साधन मनुष्य जन्म है । आत्मा का जब कभी अनन्त पुण्योदय होता है, तब कही मानव जन्म की प्राप्ति होती है। भारतीय धर्मशास्त्रो मे मनुष्य-जन्म की बडी महिमा गाई गई है। कहा जाता है कि देवता भी मानव जन्म की प्राप्ति के लिए तडपते है । भगवान महावीर ने अपने धर्म-प्रवचनो मे अनेक बार मनुष्य जन्म की दुर्लभता का वर्णन किया है
- उत्तराध्ययन ३७
“कम्मारण तु पहाणाए, आरणपुव्वी कयाइ उ । जीवा सोहिमगुपत्ता, आययन्ति मरणस्य || " अनेकानेक योनियो मे भयकर दुख भोगते-भोगते जब कभी शुभ कर्म क्षीण होते है, और आत्मा शुद्ध-निर्मल होती है, तब वह मनुष्यत्व को प्राप्त करती है ।
मोक्ष प्राप्ति के चार कारण दुर्लभ बताते हुए भी, भगवान महावीर ने, अपने पावापुरी के अन्तिम प्रवचन मे, मनुष्यत्व को ही सबसे पहले गिना है। वहाँ बतलाया है कि "मनुष्यत्व, शास्त्र - श्रवरण, श्रद्धा और सदाचार के पालन मे प्रयत्नशीलता - ये चार साधन जीव को प्राप्त होने अत्यन्त कठिन है । "
चत्तारि परमगाणि, दुल्लहाणीह जतुरगो । माणुसत्त सुई सद्धा, सजमम्मि य वीरिय ॥
- उत्तराध्ययन ३।१
क्या सचमुच ही मनुष्य जन्म इतना दुर्लभ है ? क्या मनुष्य से बढ़कर अन्य कोई जीवन नही ? इसमे तो कोई सन्देह नही कि मानव भव प्रतीव दुर्लभ वस्तु है । परन्तु, धर्म-शास्त्रकारो का आशय, इसके पीछे कुछ और ही रहा हुआ प्रतीत होता है । वे दुर्लभता का भार, मनुष्य शरीर पर न डाल कर, मनुष्यत्व पर डालते हैं । बात वस्तुत है भी ठीक | मनुष्य शरीर के पा लेने भर से तो कुछ नही हो