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परिशिष्ट
कायोत्सर्ग में लोगस्स, 'चन्देसु निम्मलयरा' तक 'नमो अरिहताण' पढकर ध्यान खोलना, प्रकट रूप मे लोगस्स सम्पूर्ण एक बार गुरु-वन्दन-सूत्र-तिक्खुत्तो तीन बार
[गुरु से, यदि गुरु न हो तो भगवान् की साक्षी से
सामायिक की आज्ञा लेना] सामायिक प्रतिज्ञा सूत्र=करेमि भते, तीन बार
[दाहिना घुटना भूमि पर टेक कर, वाया खड़ा कर, उस पर अञ्जलि-बद्ध दोनो
हाथ रखकर प्रणिपात-सूत्र=नमोत्थुण, दो बार ।
[४८ मिनिट तक स्वाध्याय, धर्म-चर्चा, आत्म
ध्यान आदि दो नमोत्थुरण मे पहला सिद्धो का और दूसरा अरिहतों का है। अरिहन्तो के नमोत्थुरण मे 'ठाण संपत्ताण' के बदले 'ठाण सपाविउ-कामारण' पढना चाहिए। यह प्रचलित परम्परा है। हमारी अपनी धारणा के लिए 'प्रणिपात-सूत्र-नमोत्थुण' का विवेचन देखिए ।