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१
(१) सामायिक लेने की विधि
शान्त तथा एकान्त स्थान, भूमि का अच्छी तरह प्रमार्जन,
श्वेत तथा शुद्ध श्रासन,
गृहस्थोचित पगडी तथा कोट आदि उतार कर शुद्ध वस्त्रो का
उपयोग,
विधि
मुखवस्त्रिका का उपयोग
पूर्व तथा उत्तर की ओर मुख,
[ पद्मासनादि से बैठकर या जिन-मुद्रा से खडे होकर ] नमस्कार-सूत्र— नवकार, तीन बार सम्यक्त्व - सूत्र = अरिहतो, तीनबार गुरुगुण स्मरण - सूत्र = पचिदिय, एक बार गुरुवन्दन - सूत्र = तिक्खुत्तो, तीन बार
[वन्दना करके आलोचना की आज्ञा लेना और जिभ - मुद्रा से आगे के पाठ पढना ]
आलोचना- सूत्र = ईरियावहिय, एक बार कायोत्सर्ग - सूत्र = तस्स उत्तरी, एक वार
आगार-सूत्र = अन्नत्थ, एक वार
[ पद्मासन आदि से बैठकर या जिन-मुद्रा से खडे होकर कायोत्सर्ग-ध्यान करना ]