________________
समाप्ति - सूत्र
शब्दार्थ
( १ )
एयरस = इस नवमस्स= नौवे सामाइयवयस्स= सामायिक व्रत के पच अइयारा = पाँच अतिचार जाणियव्वा = जानने योग्य है समायरियव्वा=आचरण करने योग्य
न=नही हैं तं जहा- वे इस प्रकार है मरण- दुप्पणिहाणे = मन की अनुचित्त प्रवृत्ति
वय दुष्परिणहाणे = वचन की अनुचित प्रवृत्ति
काय दुष्परिणहाणे = शरीर की अनुचित प्रवृत्ति सामाइयरस = सामायिक की तइ प्रकरणया = स्मृति न रखना सामाइयस्स = सामायक को अणवट्ठियस्स अव्यवस्थित
करणया करना
तस्स = उस प्रतिचार सम्बन्धी मि=मेरा
२८३
दुक्कड = दुष्कृत मिच्छा - मिथ्या होवे
( २ )
सामाइयं = सामायिक को सम्म = सम्यक् रूप मे कारण - शरीर से – जीवन से न फासियं = स्पर्श न किया हो न पालिय = पालन न किया हो न तीरिय= पूर्ण न किया हो न फिट्टिय = कीर्तन न किया हो न सोहिय = शुद्ध न किया हो न आराहिय = प्राराधन न किया हो
आणाए = वीतराग देव की आज्ञा से अणुपालिय= ग्रनुपालित-स्वीकृत न भवइ = न हुआ हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कड = वह मेरा पाप निष्फल हो
भावार्थ
( १ )
सामायिक व्रत के पाँच प्रतिचार - दोष है, जो मात्र जानने योग्य है, आचरण करने योग्य नही । वे पाँच दोप इस प्रकार है१ - मन को कुमार्ग मे लगाना २ – वचन को कुमार्ग मे लगाना, ३- शरीर को कुमार्ग मे लगाना, ४ – सामायिक को बीच में ही
पूर्ण दशा मे पार लेना अथवा सामायिक की स्मृति - खयाल न रखना तथा ५–सामायिक को अव्यवस्थित रूप से -- चचलता से करना । उक्त दोपो के कारण जो भी पाप लगा हो, वह आलोचना के द्वारा मिथ्या - निष्फल हो ।