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________________ श्री वन्दन करते अधिपति शक्र-इन आदि सूत्री मात २८० सामायिक-सूत्र दूसरा नाम शक्र-स्तव है, जो अधिक ख्याति प्राप्त है। जम्वूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र तथा कल्पसूत्र आदि सूत्रो मे वर्णन आता है कि प्रथम स्वर्ग के अधिपति शक्र-इन्द्र प्रस्तुत पाठ के द्वारा ही तीर्थ करो को वन्दन करते है, अत 'शक्र-स्तव' नाम के लिए काफी पुरानी अर्थ-धारा हमे उपलब्ध है। तीसरा नाम प्रणिपात-दण्डक है । इसका उल्लेख योगशास्त्र की स्वोपज्ञवृत्ति और प्रतिक्रमणवृत्ति आदि ग्रन्थो मे उपलब्ध होता है। प्रणिपात का अर्थ नमस्कार होता है, अत नमस्कार-परक होने से यह नाम भी सर्वथा युक्ति मूलक है। उपर्युक्त तीनो ही नाम शास्त्रीय एव अर्थ-सगत है। अत' किसी एक ही नाम का मोह रखना और दूसरो का अपलाप करना अयुक्त है। महत्त्व 'नमोत्थुण' के सम्बन्ध मे काफी विस्तार के साथ वर्णन किया जा चुका है। जैन सम्प्रदाय मे प्रस्तुत सूत्र का इतना अधिक महत्त्व है कि जिस की कोई सीमा नही बाँधी जा सकती। आज के इस श्रद्धा-शून्य युग मे, सैकडो सज्जन अब भी ऐसे मिलेंगे, जो इतने लम्बे सूत्र की नित्यप्रति माला तक फेरते है। वस्तुत इस सूत्र मे भक्ति-रस का प्रवाह बहा दिया गया है। तीर्थ कर महाराज के पवित्र चरणो मे श्रद्धाञ्जलि अर्पण करने के लिए, यह बहुत सुन्दर एवं समीचीन रचना है। उत्तराध्ययन-सूत्र मे तीर्थ कर भगवान् की स्तुति करने का महान् फल बताते हुए कहा है "यक्युइमगलेणं नाण-दसण-चरित-बोहिलाभ जणयइ । नाणसण-चरित्त-बोहिलामसंपन्ने य ण जीवे अतकिरिय कप्पविमाणोववत्तिय आराहणं आराहेइ।" -उत्तराध्ययन २६/१४ उपर्युक्त प्राकृत सूत्र का भाव यह है कि तीर्थकर देवो की स्तुति करने से ज्ञान, दर्शन और चारित्ररूप वोधि का लाभ होता है। बोधि के लाभ से साधक साधारण दशा मे कल्प विमान तथा उत्कृष्ट दशा मे मोक्ष पद का पाराधक होता है। ज्ञान, दर्शन
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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