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सामायिक सूत्र
स्पष्टत सिद्ध हो जाता है कि श्रागम की प्राचीन मान्यता 'नमोत्थु ' के विषय मे यह है कि - " प्रथम नमोत्थूण तीर्थ कर पद पाकर मोक्ष जाने वाले सिद्धो के लिए पढा जाए। यदि वर्तमान काल में तीर्थ कर विद्यमान हो, तो राजप्रश्नीय - सूर्याभदेवताधिकार, कल्पसूत्र -- महावीरजन्माधिकार, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति - तीर्थ करजन्मा भिपेकाधिकार, चौपपातिक — अवडशिष्याधिकार और ग्रन्तकृदृशाग अर्जुनमालाकाराधिकार यादि के उल्लेखानुसार उनका नाम लेकर 'नमोत्थुरण समरणस्स भगवतो महावीरस्स ठाण सपाविउकामस्स' आदि के रूप मे पढना चाहिए ।"
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यहाँ जो कुछ लिखा है, किसी श्राग्रह-वण नही लिखा है, प्रत्युत विद्वानो के विचारार्थ लिखा है । ग्रत आगमाभ्यासी विद्वान्, इस प्रश्न पर यथावकाश विचार करने की कृपा करे ।
नौ संपदा
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प्रस्तुत 'नमोत्थुरण' सूत्र मे नव सम्पदाएँ मानी गई है । सम्पदा का क्या अर्थ है, यह पहले के पाठो मे वताया जा चुका है । पुन स्मृति के लिए आवश्यक हो, तो यह याद रखना चाहिए कि सम्पदा का अर्थ विश्राम है |
प्रथम स्तोतव्य-सम्पदा है । इसमे ससार के सर्वश्रेष्ठ स्तोतव्यस्तुति योग्य तीर्थ कर भगवान् का निर्देश किया गया है ।
दूसरी सामान्य हेतु सम्पदा है । इसमे स्तोतव्यता मे कारण - भूत सामान्य गुरणो का वर्णन है । जैनधर्म वैज्ञानिक धर्म है, अत उसमे किसी की स्तुति यो ही नही की जाती, प्रत्युत गुरणो को ध्यान मे रख कर ही स्तुति करने का विधान है ।
तीसरी विशेष - हेतु सम्पदा है । इसमे स्तोतव्य महापुरुप तीर्थंकर देव के विशेष गुण वर्णन किए गए हैं ।
चतुर्थ उपयोग-सम्पदा है । इसमे ससार के प्रति तीर्थ कर भगवान् की उपयोगिता - परोपकारिता का सामान्यतया वर्णन है ।
पांचवी उपयोगसम्पदा सम्बन्धिनी हेतु सम्पदा है | इसमे बताया गया है कि तीर्थ कर भगवान् जनता पर किस प्रकार महान् उपकार करते हैं ।