SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७८ सामायिक सूत्र स्पष्टत सिद्ध हो जाता है कि श्रागम की प्राचीन मान्यता 'नमोत्थु ' के विषय मे यह है कि - " प्रथम नमोत्थूण तीर्थ कर पद पाकर मोक्ष जाने वाले सिद्धो के लिए पढा जाए। यदि वर्तमान काल में तीर्थ कर विद्यमान हो, तो राजप्रश्नीय - सूर्याभदेवताधिकार, कल्पसूत्र -- महावीरजन्माधिकार, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति - तीर्थ करजन्मा भिपेकाधिकार, चौपपातिक — अवडशिष्याधिकार और ग्रन्तकृदृशाग अर्जुनमालाकाराधिकार यादि के उल्लेखानुसार उनका नाम लेकर 'नमोत्थुरण समरणस्स भगवतो महावीरस्स ठाण सपाविउकामस्स' आदि के रूप मे पढना चाहिए ।" - यहाँ जो कुछ लिखा है, किसी श्राग्रह-वण नही लिखा है, प्रत्युत विद्वानो के विचारार्थ लिखा है । ग्रत आगमाभ्यासी विद्वान्, इस प्रश्न पर यथावकाश विचार करने की कृपा करे । नौ संपदा * प्रस्तुत 'नमोत्थुरण' सूत्र मे नव सम्पदाएँ मानी गई है । सम्पदा का क्या अर्थ है, यह पहले के पाठो मे वताया जा चुका है । पुन स्मृति के लिए आवश्यक हो, तो यह याद रखना चाहिए कि सम्पदा का अर्थ विश्राम है | प्रथम स्तोतव्य-सम्पदा है । इसमे ससार के सर्वश्रेष्ठ स्तोतव्यस्तुति योग्य तीर्थ कर भगवान् का निर्देश किया गया है । दूसरी सामान्य हेतु सम्पदा है । इसमे स्तोतव्यता मे कारण - भूत सामान्य गुरणो का वर्णन है । जैनधर्म वैज्ञानिक धर्म है, अत उसमे किसी की स्तुति यो ही नही की जाती, प्रत्युत गुरणो को ध्यान मे रख कर ही स्तुति करने का विधान है । तीसरी विशेष - हेतु सम्पदा है । इसमे स्तोतव्य महापुरुप तीर्थंकर देव के विशेष गुण वर्णन किए गए हैं । चतुर्थ उपयोग-सम्पदा है । इसमे ससार के प्रति तीर्थ कर भगवान् की उपयोगिता - परोपकारिता का सामान्यतया वर्णन है । पांचवी उपयोगसम्पदा सम्बन्धिनी हेतु सम्पदा है | इसमे बताया गया है कि तीर्थ कर भगवान् जनता पर किस प्रकार महान् उपकार करते हैं ।
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy