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प्रणिपात सूत्र
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पुरुष का कहा हुआ प्रवचन ही प्रमाणाबाधित, तत्त्वो-पदेशक, सर्वजीव-हितकर, अकाट्य तथा मिथ्यामार्ग का निराकरण करने वाला होता है। आचार्य सिद्धसेन शास्त्र की परिभाषा बताते हुए इसी सिद्धान्त का उल्लेख करते हैमाप्तोपज्ञमनुल्लड ध्य
महष्टेष्टविरोधकम् । तत्त्वोपदेशकृत् सार्व, शास्त्र कापथ-घट्टनम् ॥ ६ ॥
-न्यायावतार
तीर्थकर की वाणी . जन कल्याण के लिए
तीर्थ कर भगवान् के लिए जिन, जापक, तीर्ण, तारक, बुद्ध, बोधक, मुक्त और मोचक के विशेषण बडे ही महत्त्वपूर्ण हैं। तीर्थ करो का उच्च-जीवन वस्तुत इन विशेषणो पर ही अवलम्बित है। राग-द्वेष को स्वय जीतना और दूसरे साधको से जितवाना, ससार-सागर से स्वय तैरना और दूसरे प्राणियो को तैराना, केवलज्ञान पाकर स्वय बुद्ध होना और दूसरो को बोध देना, कर्म-बन्धनो से स्वयं मुक्त होना और दूसरो को मुक्त कराना, कितना महान् एव मगलमय आदर्श है। जो लोग एकान्त निवृत्ति मार्ग के गीत गाते है, अपनी आत्मा को ही तारने मात्र का स्वप्न रखते है, उन्हे इस ओर लक्ष्य देना चाहिए । ___ मैं पूछता हूँ-तीर्थकर भगवान् क्यो दूर-दूर भ्रमण कर अहिंसा
और सत्य का सन्देश देते हैं ? वे तो, केवलज्ञान और केवलदर्शन को पाकर कृतकृत्य हो गए है। अब उनके लिए क्या करना शेष है ? ससार के दूसरे जीव मुक्त होते हैं या नहीं, इससे उनको क्या हानि-लाभ ? यदि लोग धर्मसाधना करेंगे, तो उनको लाभ है और नही करेगे, तो उन्ही को हानि है। उनके लाभ और हानि से भगवान् को क्या लाभ-हानि है ? जनता को प्रबोध देने से उनकी मुक्ति मे क्या विशेपता हो जाएगी? और यदि प्रबोध न दें तो कौन-सी विशेषता कम हो जाएगी?