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________________ सामापिक-सूत्र भगवान् का शासन तो चक्रवर्तियो पर भी होता है । भोग-विलास के कारण जीवन की भूल भुलैय्या मे अपने कर्तव्य से पराड मुख हो जाने वाले भगवान् ही उपदेश देकर सन्मार्ग पर भान कराते है । त तोर्थ कर भगवान् चक्रवर्ती है । पड जाने वाले और चक्रवर्तियो को तीर्थंकर लाते है, कर्तव्य का चक्रवर्तियो के भी २७२ व्यावृत्त छद्म तीर्थ कर देव, व्यावृत्त छद्म कहलाते है । व्यावृत्त - छद्म का अर्थ है - 'छद्म से रहित ।' छद्म के दो अर्थ है - आवरण और छल । ज्ञानावरणीय आदि चार घातिया कर्म आत्मा की ज्ञान, दर्शन आदि मूल शक्तियो को छादन किए रहते है, ढँके रहते है, अत छद्म कहलाते है - 'छादयतीति छद्म ज्ञानावरणीयादि' - प्रतिक्रमण सूत्रपद विवृत्ति, प्रणिपातदण्डक हॉ, तो जो छद्म से, ज्ञानावरणीय आदि चार घातिया कर्मो से पूर्णतया अलग हो गए हैं, वे 'व्यावृत्त-छद्म' कहलाते हैं । तीर्थ करदेव अज्ञान और मोह प्रादि से सर्वथा रहित होते हैं । छद्म का दूसरा अर्थ है— 'छल और प्रमाद ।' ग्रत छल और प्रमाद से रहित होने के कारण भी तीर्थ कर 'व्यावृत्तछद्म' कहे जाते है । तीर्थ कर भगवान् का जीवन पूर्णतया सरल और समरस रहता है। किसी भी प्रकार की गोपनीयता, उनके मन मे नही होती । क्या अन्दर और क्या बाहर, सर्वत्र समभाव रहता है, स्पष्ट भाव रहता है । यही कारण है कि भगवान् महावीर प्रादि तोर्थ करो का जीवन पूर्णं प्राप्त पुरुषो का जीवन रहा है। उन्होने कभी भी दुहरी बाते नही की । परिचित और अपरिचित, साधारण जनता और असाधारण चक्रवर्ती आदि, अनसमझ बालक और समझदार वृद्ध-सबके समक्ष एक समान रहे । जो कुछ भी परम सत्य उन्होने प्राप्त किया, निश्छल भाव से जनता को अर्पण किया । यही प्राप्त जीवन है, जो शास्त्र मे प्रामाणिकता लाता है । प्राप्त
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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