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सामायिक-सून
का एक बहुत सुन्दर एव मनोरम रेखाचित्र है। आराध्य देव के श्रो चरणो मे अपने भावुक हृदय की समग्र श्रद्धा अर्पण कर देना, एव उनके बताए मार्ग पर चलने का दृढ सकल्प रखना ही तो भक्ति है। और यह 'लोगस्स' के पाठ मे हर कोई श्रद्धालु भक्त सहज ही पा सकता है। 'लोगस्स' के पाठ से पवित्र हुई हृदय-भूमि मे ही सामायिक का बीजारोपण किया जाता है। पूर्ण सयम का महान् कल्पवृक्ष इसी सामायिक के सूक्ष्म बीज मे छुपा हुआ है। यदि यह बीज सुरक्षित रहे, क्रमशः अकुरित, पल्लवित एव पुष्पित होता रहे, तो एक दिन अवश्य ही मोक्ष का अमृत फल प्रदान करेगा। हाँ, तो सामायिक के इस अमृत वीज को सीचने के लिए, उसे बद्ध मूल करने के लिए, अन्त मे पुन भक्तियोग का अवलम्बन लिया जाता है, 'नमोत्थुरण' का पाठ पढ़ा जाता है। ___'नमोत्थुण' में तीर्थ कर भगवान् की स्तुति की गई है। तीर्थ कर भगवान , राग और द्वीप पर पूर्ण विजय प्राप्त कर समभाव-स्वरूप सामायिक के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचे हुए महापुरुष है। अत उनकी स्तुति, सामायिक की सफलता के लिए साधक को अधिकसे-अधिक आत्म-शक्ति प्रदान करती है, अध्यात्म-भावना का वल बढाती है।
प्रभावशाली पाठ
'नमोत्थुण' एक महान् प्रभावशाली पाठ है। अत दूसरे प्रचलित साधारण स्तुति-पाठो की अपेक्षा 'नमोत्थुरण' की अपनी एक अलग ही विशेषता है। वह यह है कि भक्ति मे हृदय प्रधान रहता है, और मस्तिष्क गौण । फलत कभी-कभी मस्तिष्क की अर्थात् चिन्तन की मर्यादा से अधिक गौणता हो जाने के कारण अन्तिम परिणाम यह आता है कि भक्ति वास्तविक भक्ति न रह कर अन्धभक्ति हो जाती है, सत्याभिमुखी न रह कर मिथ्याभिमुखी हो जाती है। संसार के धार्मिक इतिहास का प्रत्येक विद्यार्थी जान सकता है कि जव मानव-समाज अन्ध-भक्ति की दल-दल मे फस कर विवेक-शून्य हो जाता है, तब वह आराध्य देव के गुणावगुणो के परिज्ञान की ओर से धीरे-धीरे लापरवाह होने लगता है, फलत