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________________ प्रतिज्ञा-सूत्र २४५ छोडना है । प्रश्न है, आत्मा को कैसे त्यागना ? क्या कभी आत्मा भी त्यागी जा सकती है ? यदि श्रात्मा को ही त्याग दिया, तो फिर रहा क्या ? उत्तर मे निवेदन है कि यहाँ श्रात्मा से अभिप्राय अपने पहले के जीवन से है । पाप कर्म से दूषित हुए पूर्व जीवन को त्यागना ही, ग्रात्मा को त्यागना है । आचार्य नमि कहते है "आत्मानम् = अतीत सावद्ययोग- कारिणम् = अश्लाध्यं ' "व्युत्सृजामि" - प्रतिक्रमणसूत्र पदविवृत्ति, सामायिक - सूत्र देखिए, जैन तत्त्व - मीमासा की कितनी ऊँची उडान है । कितनी भव्य कल्पना है। पुराने सडे-गले दूषित जीवन को त्याग कर स्वच्छ एव पवित्र नये जीवन को अपनाने का कितना महान् श्रादर्श है | भगवान् महावीर का कहना है कि "सामायिक केवल वेश बदलने की साधना नही है । यह तो जीवन बदलने की साधना है ।" ग्रत साधक को चाहिए कि जब वह सामायिक के ग्रासन पर पहुँचे, तो पहले अपने मन को ससार की वासनाओ से खाली कर दे, पुराने दूपित सस्कारो को त्याग दे, पहले के पापा चरणरूप कुत्सित जीवन के भार को फेक कर बिल्कुल नया आध्यात्मिक जीवन ग्रहरण कर ले। सामायिक करने से पहले - प्राध्यात्मिक पुनर्जन्म पाने से पहले, भोग-बुद्धि-मूलक पूर्व जीवन की मृत्यु आवश्यक है । सामायिक की साधना के समय मे भी यदि पुराने विकारो को ढोते रहे, तो क्या लाभ ? दूषित और दुर्गन्धित मलिन- पात्र मे डाला हुआ शुद्ध दूध भी शुद्ध हो जाता है । यह है जैन दर्शन का गंभीर अन्तर्हृदय, जो 'अप्पारण वोसिरामि' शब्द के द्वारा ध्वनित हो रहा है । सामायिक सूत्र का प्राण प्रस्तुत प्रतिज्ञा - सूत्र ही है । अतएव इस पर काफी विस्तार के साथ लिखा है, और इतना लिखना आवश्यक भी था । अब उपसहार मे केवल इतना ही निवेदन है कि यह सामायिक एक प्रकार का आध्यात्मिक व्यायाम है | व्यायाम भले ही थोडी देर के लिए हो, दो घडी के लिए ही हो, परन्तु उसका प्रभाव और लाभ स्थायी होता है । जिस प्रकार मनुष्य प्रात काल उठते ही कुछ देर व्यायाम करता है, और उसके
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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