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सामायिक-सूत्र
फलस्वरूप दिन-भर शरीर की स्फूर्ति एव शक्ति बनी रहती है, उसी प्रकार सामायिक-रूप प्राध्यात्मिक व्यायाम भी साधक की दिन-भर की प्रवृत्तियो मे मन की स्फूर्ति एव शुद्धि को बनाए रखता है। सामायिक का उद्देश्य केवल दो घडी के लिए नहीं है, प्रत्युत जीवन के लिए है। सामायिक मे दो घडी बैठकर आप अपना आदर्श स्थिर करते है, वाह्य-भाव से हटकर स्वभाव मे रमण करने की कला अपनाते हैं। सामायिक का अर्थ ही है-अात्मा के साथ अर्थात् अपने-अापके साथ एकरूप हो जाना, समभाव ग्रहण कर लेना, राग-द्वेप को छोड देना । प्राचार्य पूज्यपाद तत्त्वार्थ-सूत्र की अपनी टीका मे कहते है___'सम्' एकीभावे वर्तते । तद्-यथा सङ्गत घृत सङ्गत तैलमित्युच्यते एकोभूतमिति गम्यते । एकत्वेन, अयन=गमन समय , समय एव सामायिकम् । समय प्रयोजनमस्येति वा विगृह्य सामायिकम् ।
-सर्वार्थ सिद्धि ७/२१ हाँ, तो अपनी आत्मा के साथ एकरूपता केवल दो घडी के लिए ही नही, जीवन-भर के लिए प्राप्त करना है। राग-द्वप का त्याग दो घडी के लिए कर देने-भर से काम नहीं चलेगा, इन्हे तो जीवन के हर क्षेत्र से सदा के लिए खदेडना होगा । सामायिक जीवन के समस्त सद्गुणो की आधार-भूमि है। अाधार यो ही मामूली-सा सक्षिप्त नही, विस्तृत होना चाहिए। साधना के दृष्टिकोण को सीमित रखना, महापाप है। साधना तो जीवन के लिए है, फलत जीवन-भर के लिए है, प्रतिक्षण, प्रतिपल के लिए है। देखना, सावधान रहना | साधना की वीणा का अमर स्वर कभी बन्द न होने पाए, मन्द न होने पाए । सच्चा सुख विस्तार मे है, प्रगति मे है, सातत्य मे है, अन्यत्र नही
'यो वै भूमा तत्सुखम्'