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________________ २४२ सामायिक सूत्र मे रहता है, पर भाव मे रहता है । विभाव परिणति का नाम दार्शनिक भाषा मे ससार है । ग्रव पाठक अच्छी तरह से समझ सकते है कि निन्दा किसकी करनी चाहिए ? सामायिक में निन्दा विभाव परिरगति की है । जो ग्रपना नही है, प्रत्युत अपना विरोधी है, फिर भी अपने पर अधिकार कर बैठा है, उस कपाय-भाव की जितनी भी निन्दा की जाए उतनी ही थोडी है | जव किसी वस्त्र पर या शरीर पर मल लग जाए, तो क्या उसे बुरा नही समझना चाहिए, उसे धोकर साफ नही करना चाहिए ? कोई भी सभ्य मनुष्य मल की उपेक्षा नही कर सकता । इसी प्रकार सच्चा सावक भी दोप-रूप मल की उपेक्षा नही कर सकता । वह जव भी ज्यो ही कोई दोप देखता है, भटपट उसकी निन्दा करता है, उसे धोकर साफ करता है । श्रात्मा पर लगे दोपो के मल को धोने के लिए निन्दा एक अचूक साधन है । भगवान् महावीर ने कहा है - " ग्रात्म-दोपो की निन्दा करने से पश्चात्ताप का भाव जाग्रत होता है, पश्चात्ताप के द्वारा विपय-वासना के प्रति वैराग्य भाव उत्पन्न होता है, ज्योज्यो वैराग्य भाव का विकास होता है, त्यो त्यो साधक सदाचार की गुरण श्रेणियों पर आरोहण करता है, और ज्यो ही गुरण श्रेणियो पर ग्रारोहरण करता है, त्यो ही मोहनीय कर्म का नाश करने में समर्थ हो जाता है । मोहनीय कर्म का नाश होते ही ग्रात्मा शुद्ध, बुद्ध, परमात्म-दशा पर पहुँच जाता है ।" निन्दा शोक न वने بار हाँ, ग्रात्म-निन्दा करते समय एक वात पर अवश्य लक्ष्य रखना चाहिए। वह यह कि निन्दा केवल पश्चात्ताप तक ही सीमित रहे, टोपो एव विपय-वासना के प्रति विरक्त-भाव जाग्रत करने तक ही अपेक्षित रहे । ऐसा न हो कि निन्दा पश्चात्ताप ही मंगल सीमा को लाघकर शोक के क्षेत्र में पहुँच जाए | जब निन्दा शोक का रूप पकड़ लेती है, तो वह साधक के लिए बडी भयकर चोज हो जाती है | पश्चात्ताप ग्रात्मा को भवन बनाता है और शो निर्बल । शोक मे साहस का अभाव है, वर्तव्य-बुद्धि का शून्यत्व है | कर्तव्यविमूह साधक जीवन की समस्यायो को कदापि
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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