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सामायिक प्रवचन
ज्ञान प्रात्मा का गुण है
"आत्मा का ज्ञान-गुण स्वाभाविक नही है", वैशेषिक दर्शन का उक्त कथन भी अभ्रान्त नही है। प्रकृति और चैतन्य दोनो मे विभेद की रेखा खीचने वाला प्रात्मा का यदि कोई विशेष लक्षण है, तो वह एक ज्ञान ही है। आत्मा का कितना ही क्यो न पतन हो जाए, वह वनस्पति आदि स्थावर जीवो की अतीव निम्न स्थिति तक क्यो न पहुँच पाए, फिर भी उसकी ज्ञानस्वरूप चेतना पूर्णतया नष्ट नही हो पाती। अज्ञान का पर्दा कितना ही घनीभूत क्यो न हो, ज्ञान का क्षीण प्रकाश, फिर भी अन्दर मे चमकता ही रहता है। सघन बादलो के द्वारा ढंक जाने पर भी क्या कभी सूर्य के प्रकाश का दिवस-सूचक स्वरूप नष्ट हुआ है ? कभी नही। और ज्ञान के नष्ट होने पर ही मुक्ति होगी, यह कहना तो और भी अटपटा है | आत्मा का जब ज्ञान-गुण ही नष्ट हो गया, तब फिर शेष मे क्या स्वरूप बच रहेगा ? तेजोहीन अग्नि, अग्नि नही, राख हो जाती है। गुणी का अस्तित्व अपने निजी गुणो के अस्तित्व पर ही आश्रित है। क्या कभी बिना गुण का भी कोई गुणी होता है ? कभी नहीं। ज्ञान आत्मा का एक विशिष्ट गुण है, अत वह कभी नष्ट नही हो सकता । आत्मा के साथ सदैव अविच्छिन्न रूप से रहता है। भगवान महावीर तो आत्मा और ज्ञान मे अभेद सम्बन्ध मानते है और यहाँ तक कहते हैं कि 'जो ज्ञाता है, वह आत्मा है और जो आत्मा है वह ज्ञाता है।
जे विन्नाया से आया, जे पाया से विन्नाया। जेण वियाणइ से आया ।
--आचाराग ११५५ प्रात्मा निरन्वय क्षणिक नहीं
"अात्मा क्षण-क्षण मे उत्पन्न एव साथ ही नष्ट होती रहती है", बौद्ध धर्म का यह सिद्धान्त भी अनुभव एव तर्क की कसौटी पर खरा नही उतरता। क्षणभगुर का अर्थ तो यह हुआ कि "मैने पुस्तक लिखने का सकल्प किया, तव अन्य प्रात्मा थी, लिखने लगा, तव अन्य प्रात्मा थी, अव लिखते समय अन्य प्रात्मा है और पूर्ण लिखने के वाद जव पुस्तक समाप्त होगी, तव अन्य ही कोई अात्मा उत्पन्न हो जायेगी। यह सिद्धान्त प्रत्यक्षत सर्वथा वाधित है। क्योकि, मुझे