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चतुर्विंशतिस्तव सूत्र
वीरो के नाम से वीरता के भाव पैदा होते है, और कायरो के नाम से भीरुता के भाव ! जिस वस्तु का हम नाम लेते है, हमारा मन तत्क्षण उसी आकार का हो जाता है । मन एक साफ कैमरा है । वह जैसी वस्तु की ओर अभिमुख होगा, ठीक उसी का आकार अपने मे धारण कर लेगा । ससार मे हम देखते हैं कि बघिक का नाम लेने से हमारे सामने बघिक का चित्र खडा हो जाता है । सती का नाम लेने से सती का आदर्श हमारे ध्यान मे आ जाता है । साधु का नाम लेने से हमे साधु का ध्यान हो आता है । ठीक इसी प्रकार पवित्र पुरुषो का नाम लेने से अन्य सब विषयो से हमारा ध्यान हट जायगा और हमारी बुद्धि महापुरुष-विषयक हो जायगी । महापुरुषो का नाम लेते ही महामंगल का दिव्य रूप हमारे सामने खडा हो जाता है । यह केवल जड अक्षर-माला नही है । इन शब्दो पर ध्यान दीजिए, आपको अवश्य ही अलौकिक चमत्कार का साक्षात्कार होगा I
सकल्प - चित्र
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भगवान् ऋषभ का नाम लेते ही हमे ध्यान आता है- मानवसभ्यता के आदिकाल का । किस प्रकार ऋषदेवभ ने वनवासी, निष्क्रिय अबोध मानवो को सर्वप्रथम मानव-सभ्यता का पाठ पढाया, मनुष्यता का रहन-सहन सिखाया, व्यक्तिवादी से हटा कर समाजवादी बनाया, परस्पर प्रेम और स्नेह का आदर्श स्थापित किया, पश्चात् अहिंसा और सत्य आदि का उपदेश देकर लोक-परलोक दोनो को उज्ज्वल एव प्रकाशमय बनाया ।
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भगवान् नेमिनाथ का नाम हमे दया की चरम - भूमिका पर पहुँचा देता है । पशु-पक्षियों को रक्षा निमित्त वे किस प्रकार विवाह को ठुकरा देते है, किस प्रकार राजीमती-सी सर्वसुन्दरी अनुरागयुक्ता पत्नी को विना व्याहे ही त्यागकर स्वर्ण सिंहासन को लात मार कर भिक्षु बन जाते है आपका हृदय दया और त्याग वैराग्य हो उठेगा
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जरा कल्पना कीजिए, सुन्दर भावो से गद्गद