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________________ सामायिक सूत्र सम्बन्ध मे चुप रहना, नैषधकार श्रीहर्ष के शब्दो मे वारणी की निष्फलता का असह्य शल्य है २१८ " वाग्जन्म वैफल्यमसह्यशल्य गुणाद्भुते वस्तुनि मौनिता चेत् " - नैषधचरित ८ / ३२ 1 महापुरुषो का स्मरण हमारे हृदय को पवित्र बनाता है । वासनाओ की प्रशान्ति को दूर कर अखड आत्म-शान्ति का आनन्द देता है। तेज बुखार की हालत मे जब हमारे सिर पर बर्फ की ठंडी पट्टी बँधती है, तो हमे कितना सुख, कितनी शान्ति मिलती है इसी प्रकार जब वासना का ज्वर चैन नही लेने देता है, तब भगवन्नाम की बर्फ की पट्टी ही शाति दे सकती है । प्रभु का मंगलमय पवित्र नाम कभी भी ज्योतिर्हीन नही हो सकता । वह श्रवश्य ही अन्तरात्मा मे ज्ञान का प्रकाश जगमगाएगा । देहली- दीपक न्याय आप जानते है ? देहली पर रखा हुआ दीपक अन्दर और बाहर दोनो श्रर प्रकाश फैलाता है । भगवान् का नाम भी जिह्वा पर रहा हुआ अन्दर और बाहर दोनो जगत को प्रकाशमान बनाता है । वह हमें बाह्य जगत् में रहने के लिए विवेक का प्रकाश देता है, ताकि हम अपनी लोक यात्रा सफलता के साथ विना किसी विघ्न-बाधा के तय कर सके । वह हमे प्रन्तर्जगत् में भी प्रकाश देता है, ताकि हम अहिंसा, सत्य आदि के पथ पर दृढता के साथ चल कर इस लोक के साथ परलोक को भी शिव एव सुन्दर बना सके । मनुष्य श्रद्धा का, विश्वास का बना हुआ है, अत श्रद्धा करता है, जैसा विश्वास करता है, जैसा सकल्प वैसा ही बन जाता है 'श्रद्धामयोऽय पुरुष, सकल्पबल * वह जैसी करता है, यो यच्छद्ध. स एव स ' । - भगवद् गीता १७ /३ विद्वानो के सकल्प विान् वनाते हैं और मूर्खो के सकल्प मूर्ख !
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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