SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 237
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१७ चतुर्विंशतिस्तव - सूत्र I हिमालय, तो किसी को समुद्र, किसी को चाँद तो किसी को सूरज बता-बता कर सबको आश्चर्य मे डाल दिया । सब लोग कहने लगेमुट्ठी है या बला ? मुट्ठी मे यह सब कुछ नही हो सकता । झूठ सर्वथा झूठ | विद्वान् ने मुट्ठी खोली । रगकी एक नन्ही सी टिकिया हथेली पर रखी थी । पानी डाला, दवात मे रंग घुल गया । अब विद्वान् के हाथ मे कागज था, कलम थी । जो कुछ कहा था वह सव, सुन्दर चित्रो के रूप मे सब को मिल गया । यही बात भगवान् के नन्हे से नाम मे है। श्रद्धा का जल डालिए, ज्ञान का कागज और चरित्र की कलम लीजिए, फिर जो ग्रभीप्ट हो, प्राप्त कीजिए । सव मिलेगा, कमी किसी बात की नही है ! सूखी टिकिया कुछ नही कर सकती थी। इसी प्रकार श्रद्धा हीन नाम भी कुछ नही कर सकता है । , } ? लोग कहते है, ग्रजी नाम से क्या होता है? मैं कहता हूँ अच्छा श्रापका केस न्यायालय मे चल रहा है । ग्राप किसी से दस हजार रुपया माँगते है । जज पूछता है, क्या नाम ग्राप कह दीजिए, नाम का तो पता नही । क्या होगा ? मामला रद्द ! श्राप तो कहते है - नाम से कुछ नही होता । पर, यहाँ तो विना नाम के सब चौपट हो गया । यही बात भगवान् के नाम मे भी है । उसे शून्य न समझिए 1 श्रद्धा का बल लगा कर जरा दृढता के साथ नाम लीजिए, जो चाहोगे सो हो जायगा I स्मरण से मन पवित्र होता है भगवान् ऋषभदेव से लेकर भगवान् महावीर तक चौवीस तीर्थ कर हमारे इष्टदेव है, हमे अहिंसा और सत्य का मार्ग बताने वाले है, घर ग्रज्ञान - अन्धकार मे भटकते हुए हमको ज्ञान की दिव्य ज्योति के देने वाले है, अत कृतज्ञता के नाते, भक्ति के नाते उनका नाम स्मरण करना, उनका कीर्तन करना, हम साधको का मुख्य कर्तव्य है । यदि हम ग्रालस्य वश किंवा उद्दण्डता वश भगवान् का गुण-कीर्तन न करे, तो यह हमारा चुप रहना, अपनी वाणी को निष्फल करना है । अपने से गुणाधिक, श्रेष्ठ एव पूजनीय व्यक्ति के
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy