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सामायिक-सूत्र
भगवान पार्श्वनाथ हमे गगा-तट पर कमठ-जैसे मिथ्या कर्मकाण्डी को बोध देते एव धधकती हुई अग्नि मे से दयार्द्र होकर नाग-नागनी को बचाते नजर आते है। और, आगे चलकर कमठ का कितना भयकर उपद्रव सहन किया, परन्तु विरोधी पर जरा भी तो क्षोभ न हुआ | कितनी वडी क्षमा है !
भगवान् महावीर के जीवन की झाकी देखेगे, तो वह वडी ही मनोहर है, प्रभाव-पूर्ण है। वारह वर्ष की कितनी कठोर, एकान्त साधना | कितने भीपण एव लोमहर्षक उपसर्गो का सहना । पशुमेध और नर-मेध जैसे विनाशकारी मिथ्या विश्वासो पर कितने कठोर क्रान्तिकारी प्रहार | अछ तो एव दलितो के प्रति कितनी ममता, कितनी प्रात्मीयता ] गरीव ब्राह्मण को अपने शरीर पर के एकमात्र वस्त्र का दान देते, चन्दना के हाथो उडद के उवले दाने भोजनार्थ लेते, विरोधियो की हजारो यातनाएँ सहते हुए भी यज्ञ आदि मिथ्या विश्वासो का खडन करते, गौतम जैसे प्रिय-शिष्य को भी भूल के अपराध में दण्ड देते हुए भगवान महावीर के दिव्य रूप को यदि आप एक वार भी अपने कल्पना-पथ पर ला सके, तो धन्य धन्य हो जायेगे, अलौकिक यानन्द मे प्रात्म-विभोर हो जायेगे। कौन कहता है कि हमारे महापुरुप के नाम, उनके स्तुति-कीर्तन, कुछ नहीं करते। यह तो आत्मा से परमात्मा वनने का पथ है। जीवन को सरस, सुन्दर एव सबल बनाने का प्रवल साधन है । अतएव एक धुन से, एक लगन से अपने धर्म-तीर्थ करो का, अरिहन्त भगवानो का स्मरण कीजिए। सूत्रकार ने इसी उच्च प्रादर्श को व्यान में रखकर चतुविशतिस्तव-सूत्र का निर्माण किया है।
तीर्थ और तीर्थकर
"धर्म-नीर्य कर' शब्द का निर्वचन भी ध्यान में रखने लायक है। धर्म का यर्थ है, जिसके द्वारा दुर्गति मे, दुरवस्था मे पतित होता हया यात्मा नभन कर पुन स्व-ग्वरूप में स्थित हो जाए, वह अध्यात्म माधना | तीर्य का अर्थ है, जिसके द्वारा ससार समुद्र से