________________
सामायिक सूत्र
'अविराधित' है । अभग्न का अर्थ पूर्णत नष्ट न होना है, और अविराधित का अर्थ देशत नष्ट न होना है
" मग्न सर्वथा विनाशित, न भग्नोऽभग्न । विराधितो देशभग्न., न विराधितोऽविराधित
२१०
17
- योगशास्त्र, (३ / १२४) स्वोपज्ञ वृत्ति कायोत्सर्ग मे आसन
*
एक बात और । कायोत्सर्ग पद्मासन से करना चाहिए। अथवा बिलकुल सीधे खडे होकर, नीचे की ओर भुजाओ को प्रलबमान रखकर, ग्राँखे नासिका के अग्रभाग पर जमाकर अथवा बन्द करके जिन मुद्रा के द्वारा करना भी अधिक सुन्दर होगा। एक ही पैर पर अधिक भार न देना, दीवार आदि का सहारा न लेना, मस्तक नीचे की ओर नही झुकाना, आँखे नही फिराना, सिर नही हिलाना आदि बातो का कायोत्सर्ग मे ध्यान रखना चाहिए ।
समय व सम्पदा
**
सूत्र मे कायोत्सर्ग के काल के सम्बन्ध मे वर्णन करते हुए जो यह कहा गया है कि 'नमो अरिहतारण' पढने तक कायोत्सर्ग का काल है, इसका यह अर्थ नही कि कायोत्सर्ग का कोई निश्चित काल नही, जब जी चाहा तभी 'नमो अरिहता' पढा और कायोत्सर्ग पूर्ण कर लिया । 'नमो अरिहतारण' पढने का तो यह भाव है कि जितने काल का कायोत्सर्ग किया जाए अथवा जो कोई निश्चित पाठ पढा जाए, वह पूर्ण होने पर ही समाप्ति-सूचक 'नमो अरिहतारण' पढना चाहिए। यह नियम कायोत्सर्ग के प्रति सावधानी की रक्षा के लिए है । ग्रन्यमनस्क भाव से लापरवाही रखते हुए कोई भी साधना शुरू करना और समाप्त करना फल- प्रद नही होती । पूर्ण जागरूकता के साथ कायोत्सर्ग प्रारम्भ करना और समाप्त करना, कितना अधिक आत्म जागृति का जनक होता है । यह अनुभवी ही जान सकते है ।
प्रस्तुत सूत्र मे पाँच सम्पदा अर्थात् विश्राम है