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सामायिक सूत्र
शल्य क्या है ?
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शल्य का अर्थ है, 'शल्यतेऽनेन इति शल्यम्' जिसके द्वारा अन्तर मे पीडा सालती रहती है, कसकती रहती है, बल एव आरोग्य की हानि होती है, वह तीर, भाला और काँटा आदि ।
प्राध्यात्मिक क्षेत्र मे लक्षरणा-बृत्ति के द्वारा माया, निदान और मिथ्या-दर्शन को शल्य कहते हैं । लक्षरणा का अर्थ आरोप करना है | तीर आदि शल्य के आन्तरिक वेदना-जनक रूप साम्य से माया आदि मे शल्य का आरोप किया गया है । जिस प्रकार शरीर के किसी भाग मे काँटा तथा तीर श्रादि जब घुस जाता है, तो वह व्यक्ति को चैन नही लेने देता है, शरीर को विषाक्त बनाकर अस्वस्थ कर देता है, इसी प्रकार माया आदि शल्य भी जब अन्तर्हृदय मे घुप जाते हैं, तब साधक की आत्मा को शान्ति नही लेने देते हैं, उसे सर्वदा व्याकुल एव बेचैन किए रहते हैं सर्वथा अस्वस्थ बनाए रखते हैं । अहिंसा, सत्यादि आत्मा का आध्यात्मिक स्वास्थ्य है, वह शल्य के द्वारा चौपट हो जाता है, साधक आध्यात्मिक दृष्टि से बीमार पड जाता है ।
१. - माया- शल्य - माया का अर्थ कपट होता है । अतएव छल करना, ढोग रचना, जनता को ठगने की मनोवृत्ति रखना, अन्दर और बाहर एकरूप से सरल न रहना, स्वीकृत व्रतो मे लगे दोषो की आलोचना न करना, माया- शल्य है ।
२ – निदान - शल्य - धर्माचरण से सासारिक फल की कामना करना, भोगो की लालसा रखना निदान है । किसी राजा ग्रादि का धन, वैभव देखकर या सुनकर मन मे यह सकल्प करना कि ब्रह्मचर्य, तथा तप श्रादि मेरे धर्म के फलस्वरूप मुझे भी यही वैभव एव समृद्धि प्राप्त हो, यह निदान - शल्य है |
३ - मिथ्यादर्शन - शल्य -- सत्य पर श्रद्धा न करना, ग्रसत्य का प्राग्रह रखना, मिथ्यादर्शन-शल्य है । यह शल्य बहुत भयकर है। इसके कारण कभी भी सत्य के प्रति प्रभिरुचि नही होती । यह शल्य सम्यग्दर्शन का विरोधी है ।