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सामायिक सूत्र
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व्यापार मे केन्द्रित कर, अपूर्व समाधि भाव की प्राप्ति के लिए एव पाप कर्मों के निर्धातन के लिए सत्प्रयत्न करना ही, प्रस्तुत उत्तरीकरण-सूत्र का महामंगलकारी उद्देश्य है ।
कायोत्सर्ग का महत्त्व
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हाँ तो, यह कायोत्सर्ग की प्रतिज्ञा का सूत्र है । पाठक मालूम करना चाहते होगे कि कायोत्सर्ग का अर्थ क्या है ? कायोत्सर्ग मे दो शब्द है— काय और उत्सर्ग । अत कायोत्सर्ग का अर्थ हुया - काय ग्रर्थात् शरीर का, शरीर की चचल क्रियाओ का उत्सर्ग अर्थात् त्याग । आशय यह है कि कायोत्सर्ग करते समय साधक, शरीर का विकल्प भूलकर, शरीर की मोह-माया त्याग कर आत्म-भाव मे प्रवेश करता है । श्रीर, जब ग्रात्म भाव मे प्रविष्ट होकर शुद्ध परमात्म-तत्त्व का स्मरण किया जाता है, तब वह परमात्म भाव मे लीन हो जाता है। जब कि यह परमात्म भाव मे की लीनता अधिकाधिक रसमय दशा मे पहुँचती है, तब आत्म-प्रदेशो मे व्याप्त पाप कर्मों की निर्जरा - क्षीणता होती है, फलत जीवन मे पवित्रता श्राती है । ग्राध्यात्मिक पवित्रता का मूल कायोत्सर्ग मे अन्तर्निहित है ।
कायोत्सर्ग की व्युत्पत्ति मे शरीर की चचलता का त्याग उपलक्षरणमात्र है । शरीर के साथ मन, वचन का भी ग्रहरण है | मन, वचन और शरीर का दुर्व्यापार जब तक होता रहता है, तब तक पाप कर्मो का आस्रव बन्द नही हो सकता । और जब तक कर्म - बन्धन से छुटकारा नही होता, तब तक मोक्ष - पद की साधना पूर्ण नही होती । ग्रत कर्म बन्धनो को तोडने के लिए तथा कर्मो का प्रस्रव रोकने के लिए मन, वचन और शरीर के अशुभ व्यापारो का त्याग ग्रावश्यक है, और यह त्याग कायोत्सर्ग की साधना के द्वारा होता है । इस प्रकार कायोत्सर्ग मोक्ष प्राप्ति का प्रधान काररण है, यह न भूलना चाहिए ।
आत्म शुद्धि के लिए प्रायश्चित्त
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प्रायश्चित्त का महत्त्व, साधना के क्षेत्र मे बहुत वडा माना गया है । प्रायश्चित एक प्रकार का प्राध्यात्मिक दण्ड है, जो किसी भी