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विश्व क्या है ?
आदि को तो ये सङ्कल्प नही हए ? एक नन्हे-से कीड़े मे भी सकल्प शक्ति है। वह जरा-सा छेडने पर झटपट सिकुडता है और आत्मरक्षा के लिए प्रयत्न करता है, परन्तु ईट या पत्थर को कितना ही पीटिए, उनकी ओर से किसी भी तरह की चेतना का प्रदर्शन नही होगा।" चार्वाक उक्त प्रश्नो के समक्ष मौन है।
अतएव सक्षेप मे यह सिद्ध हो जाता है कि यह अनादि ससार, चैतन्य और जड उभयरूप है, एकरूप नही। जैन तीर्थकरो का कथन इस सम्बन्ध मे पूर्णतया सौ टची सोने के समान निर्मल और सत्य है। : : *
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